मावभूमि एवं मातृभाषा


मावभूमि एवं मातृभाषा


       वैदिक स्वग के  प्रत्येक सदस्य-सदस्या को सच्चा देशभक्त होना चाहिए । देशभक्ति ही ईश्वर भक्ति का प्रायोगिक (प्रेक्टीकल) रूप है |  और देशभक्ति का अर्थ है-'तिम्रो देवी मयोभुवः' तीन देवियों-मातृभूमि, मातृभाषा और मातृ संस्कृति से प्यार, अर्थात् इनकी रक्षा में सर्वस्व होम सकने की दृढ़ भावना | 


      आज जब मातृभूमि से प्यार करने का दम भरने वाले भी नमतभाषा और संस्कृति का गला घोटतें हैं और कभी कभी तो विदेशी भाषा और धर्म विहीन सभ्यता तक को स्वभाषा और संस्कृति से अधिक महत्व देते हैं तो आश्चर्य और खेद से मन व्यथित हो उठता है ।


      वैदिक स्वर्ग का प्रत्येक सदस्य अपने हर कार्य को देश-भक्ति और राष्ट्रीय गौरव की कसौटी पर कसता है। वह अपनी मातृभाषा (आर्यभाषा = हिन्दी) का ही पत्र व्यवहार, हिसाब रखने, तार देने तथा पते आदि में प्रयोग करता है। अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी सभ्यता की गुलामी उसे नहीं सुहातीवह जानता है कि इस मानसिक दासता का परिणाम भी अन्ततः आर्थिक अशुचिता ही है। कवि की यह वाणी उसे सदैव स्मरण रहती है:


“निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौ मूल"


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