माता-पुत्र एवं पिता-पुत्र व्यवहार


माता-पुत्र एवं पिता-पुत्र व्यवहार


        यहाँ वैदिक स्वर्ग की इस झाँकी में आप देख रहे हैंराजादुष्यन्त पत्नी शकुन्तला को। अपने पुत्र भरत को वह शिक्षण दे रही है। सिंह शावक के साथ बालक भरत खेल रहा है। यह वही भरत है जिसके शुभ नाम से हमारे इस महान् देश का नाम 'भारत' पड़ा। माता की सशिक्षा का यह सुफल है।


       नारी के पत्नी रुप की महिमा हम पीछे पढ़ चुके हैं। नारी का अधिक महनीय और गौरवशाली स्वरुप है-माता। 'मातृ देवो  भव'" इस धरती पर माता सबसे बड़ा देवता है। गर्भ में धारण करने के समय से लेकर जब तक बालक समर्थ नहीं हो जाता तब तक माँ बच्चे के लिये जो कुछ करती है उसकी गरिमा को शब्दों में बाँध सकना सर्वथा अशक्य है।


       महाभारत में यक्ष-युधिष्ठिर सम्वाद' नामक एक बड़ा ही मनोहर और शिक्षाप्रद प्रसंग है। यहाँ अन्य अनेक प्रश्नों के साथ यक्ष युधिष्ठिर से प्रश्न करते हैं- किं स्विद् गुरुतरेभूमेः'


      अर्थात् धरती से भारी वस्तु क्या है ? युधिष्ठिर महाराज उत्तर देते हैं- 'माता गुरुतरे भूमेः


     अर्थात् माँ की गरिमा पृथ्वी से भी भारी है। पृथिवी सर्व सहा है। आप उसे खोदिये, थूक, टट्टी, पेशाव कुछ भी कीजिये सब चुपचाप सहती है। वह तो जड़ तत्व हैपर माँ तो चेतन तत्व होते हुए भी यह सब कुछ सहती हैनिःसन्देह माता के ऋण से अनुण हो सकना असम्भव ही है।


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