मानवीय लक्ष्य की प्राप्ति आत्मउन्नति द्वारा

मानवीय लक्ष्य की प्राप्ति आत्मउन्नति द्वारा


           मानव जीवन का लक्ष्य आत्मउन्नति है, आत्मउन्नति के बिना जीवन मृतक तुल्य है, आत्मउन्नति द्वारा जन्म जन्मातरो के पाप-तापो को भस्म करके परमपिता परमेश्वर के अमृत पुत्र कहलाने के अधिकारी हो जाते है। जन्म मरण के बन्धन से मुक्त होकर मानव अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। आत्मउन्नति के लिए मन पर काबू करना परमावश्यक है। महाभारत में स्पष्ट मिलता है-"मन एवं मनुध्याणां बन्धमोक्षयों" अर्थात् मन ही मनुष्य के बन्धन और मन ही मानव के मोक्ष का कारण है वेद में भी स्पष्ट है कि:


         "यस्मान्नमृते किच्चनं कर्म क्रियते तन्मे मनः शिव संकल्पमुस्त" अर्थात् मन ही वास्तव में समस्त लक्ष्यों के आधार शिला है, मनुष्य को वास्तविक लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है।


          गुरु शंकाराचार्य जी ने मन की शक्ति को बहुत ही महान बताया जो कि चरित्र निर्माण में सहायक है मन को काबू में कर लेना ही सिद्धि अभिष्ट है। इसकी शक्ति महान है "मनोहियेन" अर्थात् संसार को जीतने के लिए मन पर विजय पाना अत्यन्त आवश्यक है मन ही लोक तथा ब्रह्म शक्ति का देवता हैभगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उपदेश हुये कहा है कि मन बड़ा चंचल है इसे कठिनता से वश में किया जाता है धैर्य और चरित्र निर्माण से यह आसानी में काबू हो जाता है विद्वान व योगीजन मन पर काबू करने के लिए धर्म के लक्षणों की सहायता लेते है। जिससे मानव जीवन सफल होता है और ईश्वर भक्ति में सहायता मिलती है। यम नियम द्वारा मनुष्य मन पर काबू करते हुये आत्म उन्नति कर लेता है जो उसका परम लक्ष्य है। योग के आठ अग:- (1) यम, (2) नियम (3) आसन (4) प्राणायाम (5)प्रत्याहार (6) धारणा (7) ध्यान (8)समाधि।


            इनमें यमः- (1) अहिंसा (2) सत्य (3) अस्ते (चोरी न करना) (4) ब्रह्मचर्य, (5) अपरिग्रह (योग साधाना में सहायक है) नियमः (1) शौच, (2) संतोष, (3) तप, (4) स्वादधाय (5) ईष्ट प्राणिधाम।


       नियमः (1) शौच, (2) संतोष, (3) तप, (4) स्वादधाय (5) ईष्ट प्राणिधाम।


           समाधिः समाधि में भक्त और भगवान एक हो जाते है जिससे मन सहज ही नियन्त्रण होकर चरित्र बल को छू लेता है और अपनी सिद्धि प्राप्त कर लेता है।


        "ओ३म् क्रतो स्मरण" निरन्तर ओ३म् का स्मरण करना मन की पवित्रता के लिये अति आवश्यक है। स्वामी दयानन्द सरस्वती स्पष्ट करते है कि "जो मनुष्य सत्य प्रेम मन भक्ति से ईश्वर की उपासना करेंगे उन्हीं उपासको को परम अामी परमेश्वर मोक्ष सुख देकर सदा-सदा के लिए आनन्द युक्त कर देते है।


         सत्यार्थ प्रकाश के सप्तम समुल्लास में भी स्वामी जी ने ईश्वर भक्ति का समुवित वर्णन किया है जिसमें मन की साधना व चरित्र निर्माण को प्राथमिकता दी है।


         अतः स्पष्ट है मानव को जीवन निर्माण के लिए अपना चरित्र निर्माण करते हुए मन को नियन्त्रण करना परमावश्यक जिससे उसको अभीष्ट सिद्धि प्राप्त हो सके। कवि के शब्दों में मन का स्वामी हूँ, मैं मन केरा दास है,


मन के मन्दिर में भगवान तेरा वास है,


अपनी ज्योति से मन जगमगा दो,


अपनी भक्ति का अमृत रस मुझे पिला दो।


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