'वैदिक स्वर्ग' निर्माण सम्बन्धी व्रत
'वैदिक स्वर्ग' निर्माण सम्बन्धी व्रत
हम सभी इस वैदिक स्वर्ग अर्थात् आदर्श गृहस्थ के सदस्य-सदस्यायें हैं प्रभो ! हम आज तिथि१ संवत् २... आर्य संवत्सर ३ दयानन्दाब्द ४ के इस शुभ दिन अपने आपको तेरे पवित्र चरणों में उपस्थित करके निष्ठा पूर्वक व्रत लेते हैं कि हम सभी सदस्य-सदस्यायें अपने प्रत्येक विचार, उच्चार और आचार से आर्य परिवार के आदर्श की रक्षा करेंगे। हम पारस्परिक व्यवहार में प्रेम की गंगा बहायेंगे। हम आर्य हैं हमारा धर्मग्रन्थ वेद हैहमारा उपास्य देव ओ३म् है हमारा गुरुमंत्र-गायत्री है। हमारी मातृभूमि-भारत माता है और हमारे आचार्य ऋषि दयानन्द हैं, हम राम-कृष्ण, शिवा-प्रताप, गौतम और गान्धी के वंशज हैं, हम गौतम, कपिल, कणाद, पतञ्जलि, व्यास, जैमिनि, याज्ञवल्क्य और वाल्मीकि आदि ऋषियों और अपाला, घोषा, गार्गी, मैत्रेयी, मदालसा, लोपामुद्रा, सीता, सावित्री, भारती आदि ऋषिकाओं एवं देवियों की संतानें हैंहम अपने दैनिन्दिन व्यवहार में इस गौरव की सदा रक्षा करेंगे। अपने सदाचरण और सत्य-व्यवहार से अपने महान् राष्ट्र का गौरव बढ़ायेंगे और तेरे अमर पुत्र कहलायेंगे, प्रभो! हमें शक्ति-भक्ति दो हम इस व्रत का पालन कर सकें |
निर्देशन- अभिवादन के पश्चात् हाथ-मुँह धोकर एवं उषः पान करके परिवार के सभी सदस्य (अस्वस्थ तथा अधिक छोटे बालकों को छोड़कर) एक स्थान पर, घण्टी बजते ही एकत्र हो जावें तथा एक स्वर में मिलकर उपर्युक्त क्रम से प्रातः कालीन मन्त्रों का पाठ, प्रभाती गान तथा १-२ ईश-विनय के अन्य पद या भजन गायें पश्चात सभी मिलकर 'वैदिक स्वर्ग निर्माण' सम्बन्धी व्रत को दुहरायें |