क्या लोग थे वो दीवाने

क्या लोग थे वो दीवाने


          गायत्री परिवार के संस्थापक श्री राम शर्मा कभी आर्यसमाज मथुरा के सदस्य थे। कालांतर में आर्यसमाज त्याग कर आपने एक नवीन मत गायत्री परिवार की स्थापना की थी। गायत्री के नाम से नवीन देवी कल्पित की। यज्ञ कर्म को को गायत्री देवी की उपासना से जोड़कर आपने अपना मत चलाया। इसी प्रक्रिया में गुरु के नाम पर अपनी और अपनी पत्नी की फोटो को भी जोड़ दिया गया। श्रीराम शर्मा जी ने अपनी एक जीवनी प्रकाशित की थी। उस जीवनी में उन्होंने अनेक अवैदिक बातें अपने विषय में छाप दी। मथुरा में आर्यसमाज के महान प्रचारक पंडित प्रेमभिक्षु जी सत्य धर्म प्रकाशन के अंतर्गत पुस्तकें और तपोभूमि नामक पत्रिका प्रकाशित करते थे। प्रसिद्द पुस्तक दो बहनों की बातें लेखक पंडित सिद्धगोपाल जी आप ही प्रकाशित हुई थी। दशकों तक आर्यसमाज के सिद्धांतों का मथुरा-आगरा जनपद में प्रचार करने का श्रेय आचार्य प्रेमभिक्षु जी को जाता हैं। श्री प्रेमभिक्षु जी ने देखा कि श्री राम शर्मा जी की जीवनी अनेक प्रकार के पाखंडों को बढ़ावा दे रही हैं तो आपने श्रीराम शर्मा जी को प्रतिउत्तर देने का निश्चय किया। आपने श्रीराम शर्मा:एक चिंतन के रूप में एक पत्र का लेखन किया। उस पत्र को भिक्षु जी ने श्री राम शर्मा को डाक द्वारा भेजा और उसके उत्तर देने का आग्रह किया। पर श्री राम शर्मा ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया। उसके स्थान पर उन्होंने भिक्षु जी को प्रस्ताव भेजा कि गायत्री परिवार में आ जाओ। धन, नाम की कोई कमी नहीं रहेगी। भिक्षु जी स्वामी दयानन्द के तपे हुए शिष्य थे। उन्होंने अपने सिद्धांतों से किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया। श्रीराम शर्मा पर अपना लिखा हुआ लेख प्रकाशित कर अपने ऋषि कर्त्तव्य का पालन किया। एक शोधकर्ता ने श्री राम शर्मा पर अपना शोध प्रबंध लिखा था। जब उसने महात्मा प्रेमभिक्षु लिखित लेख को पढ़ा तो उसे भारी पश्चाताप हुआ। उसने श्री राम शर्मा पर लिखा हुआ अपना शोध प्रबंध वापिस कर दिया और उसे अपनी कृति के रूप में मानने से इंकार कर दिया। महात्मा प्रेम भिक्षु जी के महान पुरुषार्थ के लिए उन्हें नमन। आशा है पाठकों को उनके जीवन के इस संस्मरण से ऋषि के लिए कार्य करने की प्रेणना मिलती रहेगी।


                                                                                          डॉ विवेक आर्य


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