कुछ वर्ष पूर्व बिहार के एक साथी ने बताया 

कुछ वर्ष पूर्व बिहार के एक साथी ने बताया 


           कुछ वर्ष पूर्व बिहार के एक साथी ने विस्तार से बताया था कि हमारे पूर्वजों ने मुस्लिम आततायियो से बचने-बचाने के लिए अनेक परम्पराए प्रारंभ की थी। उसमे उन्होंने कुछ बताई थी-


   1. युवतियों को सूअर खून पैरो पर मेहँदी की तरह लगाने की परंपरा।


   2. सन्यासियो द्वारा सूअर की हड्डी युक्त खडाऊ का प्रचलन चलाना।


   3. एक वार्षिक उत्सव जिसमे गायो के झुण्ड के बीच सूअर को छोड़ कर गायों से उसे मरवाना।


   4. विवाह के बाद वधु के घर से निकलते समय दरवाजे पर सूअर के बच्चे को पटक कर मार कर उसके खून को बधू के माथे पर लगाना।आदि आदि।


    5. बन्दा बैरागी ने मुसलमानों द्वारा हिन्दू मंदिरों में गौ काटे जाने के प्रतिशोध में मस्जिदों में सूअर कटवाये थे।


   6. सिंध में आर्यसमाज द्वारा दलित समाज को उनकी बस्तियों में पालने के लिए सूअर दिए गये थे जिन्हें देखकर मुस्लिम मौलवी उन बस्तियों में प्रवेश नहीं करते थे।


    7. सिख समाज के कुछ सदस्यों द्वारा शुद्ध होने वाले अर्थात इस्लाम छोड़ कर वापिस आने वाले लोगों को सूअर के दातों से बनी चम्मच से चरणामृत पिलाया जाता था।


          मुझे ये सारी बाते विचित्र लगी पर अपनी वस्तुओ को उनके लिए हराम करने का उनका तर्क मुझे विचार के मजबूर करता है। आपका क्या विचार हैं ?


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