कृपालसिंह

२१ फरवरी १९१५ की क्रान्ति का गद्दार भेदिया


कृपालसिंह


       जैसा कि पाठकों ने स्थान-स्थान पर पढ़ा है कि २१ फरवरी १९११. को सारे भारत में एक व्यापक क्रान्ति करने की तैयारी क्रान्तिकारी संगठनों ने कर ली थी। यदि यह क्रान्ति सफल हो जाती तो देश बहुत पहले आजाद हो जाता। बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब यहां तक कि बर्मा तक शस्त्रास्त्रों के भंडार इकट्ठे कर लिये गये थे। क्रान्तिकारी संगठन अपने स्थानों पर पहुंच चुके थे। यह सब कुछ विफल किया एक सिख कृपालसिंह ने। वैसे ऐसे नीच व्यक्ति के साथ 'सिख' शब्द लगाना सारी सिख कौम को कलंकित करना है इसलिए इसका केवल नाम से ही परिचय दिया जायेगा। पाठकों को गद्दारों की भी जानकारी होनी चाहिए।


       पंजाब के एक मुसलमान पुलिस उपअधीक्षक (डी.एस.पी.) ने लालच देकर कृपालसिंह को गुप्तचर बना क्रान्तिकारियों का भेद लेने को कहा। वह अपने दूर के भाई से सम्बन्ध बनाकर क्रान्तिकारी दल में शामिल हो गया। क्रान्तिकारियों को इस पर सन्देह तो हो गया था किन्तु उन्होंने उसको इसलिए नहीं मारा कि क्रान्ति के दो-चार दिन पहले कोई बखेड़ा खड़ा न हो जाये। इसने २१ फरवरी की क्रान्ति की सूचना अधिकारियों तक पहुंचा दी। क्रान्तिकारियों ने इस पर निगरानी शुरू करके योजना बदलकर १९ फरवरी की तारीख तय कर दी। यह सूचना देने के लिए जो संदेशवाहक आया तो उसने सहजभाव से यह सूचना रासबिहारी को दी। उसे भी इसने सुन लिया। शाम को मौका मिलते ही वह खिसक गया और एक निकट के गुप्तचर को यह सूचना भी दे आया। चारों ओर व्यापक स्तर पर जोरशोर से छापे पड़े और धर-पकड़ शुरू हो गयी। धरपकड़ के कारण १९ फरवरी की सूचना तब तक नहीं पहुंच पाया। इस प्रकार यह क्रान्ति विफल हो गयी। १९ फरवरी को ७०-८० लागा को लेकर केवल करतार सिंह ही फीरोजपुर छावनी पर आक्रमण करन पहुंचा किन्तु वहां व्यापक पहरा देखकर वापस लौट आया। इस प्रकरण में सैकड़ों क्रान्तिकारी पकड़े गये जिनमें से अधिकांश को फांसी या काला पानी का आजीवन कारावास हुआ(सम्पादक)


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