क्रान्तिकारी ऊधमसिंह/क्रान्तिकारी जगत सिंह

अमेरिका से लौटने वाले एक और स्वतन्त्रता प्रेमी


क्रान्तिकारी ऊधमसिंह


        जिला अमृतसर के 'कसैल' नामक गांव में जन्मे ऊधमसिंह का अधिक विवरण ज्ञात नहीं है। उनके विषय में इतनी ही जानकारी प्राप्त है कि जब 'गदर' समाचार पत्र द्वारा प्रवासी भारतीयों को देश में लौट कर आजादी के आन्दोलन में भाग लेने का आह्वान किया गया तो लौटने वाले उन व्यक्तियों में आप भी थे। अमेरिका से ३५० प्रवासी भारतीयों को लेकर एक जहाज भारत लौटा तो सारे भारतीयों को गिरफ्तार कर जेल में लूंस दिया गया। अपनी ही भूमि पर अपनी यह दुर्दशा देकर ऊधमसिंह सहित सभी स्वतन्त्रता प्रेमियों के हृदय पर आघात लगा। इससे भी अधिक अत्याचारपूर्ण घटना यह घटी कि सन् १९१५ के फरवरी मास में आयोजित पंजाब के विप्लव के विफल हो जाने पर वहां से देशद्रोह के आरोप में अमेरिका से लौटने वाले लोगों को भी घसीट लिया गया और कितने ही निर्दोष लोगों को फांसी या आजीवन कैद की सजा सुना दी गयी। ऊधमसिंह को उम्रकैद की सजा सुनाकर कालेपानी (अंडमान जेल में) भेज दिया गया। १९२१ के अन्त में आपको मद्रास की बेलारी जेल में लाकर एक सुनसान कोठरी में बंद कर दिया। एक दिन सवेरे अधिकारी ने आकर देखा तो कोठरी पर ताला बंद था किन्तु आप गायब थे। वहां से भागकर आप काबुल पंहुचे। देश की याद आने पर आप फिर भारत लौट आये। यहां आपके गिरफ्तारी-इश्तिहार लगे हुए थे। पुलिस द्वारा तलाश जोरों पर थीआपको पुनः काबुल लौट जाना पड़ा। वहां से एक दिन फिर भारत आने के लिए जब आप सरहद पर पहुंचे तो किसी ने आपको गोली मार दी। हत्यारा कौन था, यह रहस्य आज तक भी बना हुआ है। अंग्रेजों ने निर्दोष लोगों के साथ कैसा-कैसा नारकीय व्यवहार किया है, इसका एक प्रमाण उधमसिंह है |


 


क्रान्तिकारी जगत सिंह


      देशभक्त जगतसिंह के बारे में इतनी ही जानकारी उपलब्ध है कि क्रान्ति का वातावरण बनने पर अमेरिका से जब सिखों सहित अनेक भारतीय भारत लौट आये तो उनमें जगतसिंह भी थे। पंजाब की क्रान्ति विफल होने के बाद पुलिस का आतंक बढ़ गया था। ऐसी परिस्थितियों में आपको दो साथियों के साथ किसी क्रान्ति-सम्बन्धी काम के लिए भेजा गया। आप तीनों एक तांगे में सवार होकर निकले।


        रास्ते में तीन सिखों को एक साथ तांगे में सवार देख पुलिस ने रोक लिया और तीनों को थाने में चलने के लिए विवश करने लगे। थाने में जाने का मतलब था नरक की यातनाएं भुगतना या क्रान्ति-योजना का भेद बताना। इनको दोनों ही बातें स्वीकार नहीं थीं। आपके दल ने पुलिस का मुकाबला शुरू कर दिया। तीनों में से एक मारा गया, दो भाग निकले। सरदार जगतसिंह हृष्ट-पुष्ट, लम्बे-तगड़े भीमकाय व्यक्ति थे। दूर से ही पहचाने जाते थे। जगतसिंह एक स्थान पर पानी पीकर हाथ पोंछ रहे थे कि पीछे से आकर इनसे भी शक्तिशाली एक मुसलमान इनकी दोनों टांगों से मजबूती से चिपट गया। धक्का-मुक्की में ये गिर गये और गिरफ्तार कर लिये गये। फांसी की सजा देकर इनका भी जीने का अधिकार छीन लिया। 


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