किस व्यवहार में तन, मन, धन लगाना चाहिए
प्र.) किस-किस प्रकार से किस-किस व्यवहार में तन, मन, धन लगाना चाहिए?
उ.) निम्नलिखित चारों में विद्या की वृद्धि; परोपकार, अनाथों का पालन और अपने सम्बन्धियों की रक्षा। विद्या के लिए शरीर का आरोग्य और उससे यथायोग्य क्रिया करनी, मन से अत्यन्त विचार करना कराना और धन से अपनी सन्तान और अन्य मनुष्यों को विद्यादान करना कराना चाहिए। परोपकार के लिये-शरीर और मन से अत्यन्त उद्योग और धन से नाना प्रकार के व्यवहार तथा कारखाने खड़े करने कि जिनमें अनेक मनुष्य कर्म करके अपना-अपना जीवन सुख से व्यतीत करेंअनाथ उनको कहते हैं कि जिसका सामर्थ्य अपने पालन करने का भी न हो जैसा कि बालक, वृद्ध, रोगी, अंग-भंग आदि है। उनको भी तन, मन, धन लगाकर सुखी रख के जिस-जिससे जो-जो काम बन सके उस-उससे वह कार्य सिद्ध करना चाहिये कि जिससे कोई आलसी हाक नष्टबुद्धि न हों और अपने सन्तान आदि मनुष्यों के खान-पान अथवा पिया की प्राप्ति के लिये जितना तन, मन, धन लगाया जाये उतना थोड़ा ही १ किसी को निकम्मा कभी न रहना और न रखना चाहिये।