कीर्ति और यश का दाता क्षत्रिय


कीर्ति और यश का दाता क्षत्रिय-


      मन्त्र-वर्णित जनता की पुकार चक्षु-श्रोत्र के पश्चात् यशो अस्मासु धेहि है-जहाँ हमें आँखें दो, कान दो, वहाँ यश और कीर्ति भी दो। हमारी कीर्ति भी आँख, कान और वाणी का विषय बन जाए। क्षत्रिय को यशोधन कहा गया है। जिसके कर्त्तव्य को देखकर शत्रु और मित्र के हृदय पर योद्धा के विजय की धाक छा जाए, उसे यश कहेंगे। जब यही यश लोगों की जिह्वा पर आ जाए तो कीर्ति कहलाएगी। नव-स्नातकों से जनता-जनार्दन की माँग है-हम में भी वह उत्साह, शौर्य व पराक्रम भर दो, जो अन्याय-निवारण कर, न्याय की स्थापना कर सके और हम यशस्वी बन सकें।


अन्न और उदर के दाता वैश्य-


      मन्त्र-वर्णित जनता की पुकार चक्षु-श्रोत्र-यश के पश्चात् अब अन्न, लोहित और उदर के लिए हैअभाव-दु:ख के निवृत्त्यर्थ वैश्य-स्नातकों से कहा जा रहा है कि आपने अभाव-निवारण का व्रत लिया हुआ है और हम अभावग्रस्त हैं, हमारे पास अन्न नहीं, रक्त कहाँ से बनेगा? हमें अन्न दो, रक्त दो, हम उदर-रोगों से पीड़ित हैं, उनकी निवृत्ति कर हमें भावयुक्त कर दोइस प्रकार उनकी पुकार सुनकर ब्राह्मण व्रती ने लोगों को आँख व कान दे दिये, क्षत्रिय व्रती ने यश और कीर्ति दी और वैश्य व्रती ने अन्न, रक्त और उदर प्रदान कर दिया। समाज और राष्ट्र में सर्वत्र आनन्द छा गया |  यही शीक्षा, अभीक्षा, परीक्षा और दीक्षा पदों में आए हुए ईक्ष धातु का मर्म और रहस्य है | विद्वद्-जनों से विनम्र प्रार्थना है कि इन चारों पदों में ईक्ष धातु का दर्शन कर जो व्याख्या की है, उसमें यदि कोई त्रुटि हो तो भूल-सुधार करने की कृपा करें, जिससे कि अगले संस्करण में मैं उनका उपयोग कर सकूँ। इत्योम् शम्।


विदुषां वशंवदः


-दीक्षानन्द सरस्वती


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