कामागाटामारू जहाज की कहानी
कामागाटामारू जहाज की कहानी
'कामागातामारू' जहाज की चर्चा के बिना भारत की आजादी का इतिहास पूरा नहीं होता। यह जहाज आजादी के क्रान्ति-आन्दोलन का एक स्रोत सिद्ध हुआ। दिल्ली-निवासी लाला हरदयाल जब सरकारी छात्रवृत्ति पर इंगलैंड पढ़ने गये तो वहां क्रान्तिकारियों के गुरु श्याम जी कृष्ण वर्मा और क्रान्तिकारी विनायक सावरकर से उनकी भेंट हुई। उनसे प्रभावित होकर उन्होंने सरकारी छात्रवृत्ति छोड़ दी। उसके बाद भाई परमानन्द के परामर्श से 'गदर पार्टी' नामक एक क्रान्ति-संगठन खड़ा किया। इसकी अमरीकी शाखा की स्थापना २० मई १९१३ को प्रवासी भारतीयों को संगठित करके कैलिफोर्निया के यूलो नामक नगर में की गयी। इसका 'गदर' नामक मुखपत्र भी प्रारम्भ हुआ। इस पत्र के द्वारा विदेशों में भारत की आजादी के लिए क्रान्ति का वातावरण बना। देश-विदेश में शस्त्र-संग्रह करने की योजना भी बनी। इस कार्य में कैनेडा के प्रवासी भारतीयों का विशेष योगदान था जिसमें सिखों की संख्या अधिक थी |
अंग्रेज सरकार को इन योजनाओं ने भयभीत कर दिया। उसने इन सारी योजनाओं को निष्फल करने का लक्ष्य बनाया। अंग्रेज सरकार के इशारे पर कैनेडा के इमिग्रेशन (आप्रवासी) विभाग ने एक कानून बनाकर भारतवासियों के कैनेडा में प्रवेश करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया और सैकड़ों सिख नेताओं को कैनेडा से निकाल दिया गया। कैनेडा से वापस हुए सभी भारतीय हांगकांग में इकट्ठे होते गये। कैनेडा सरकार ने यह नियम बना दिया कि जिस देश का जहाज सीधा अपने देश से कैनेडा पहुंचेगा, केवल उसी जहाज के यात्रियों को कैनेडा में उतरने दिया जायेगाअंग्रेज और कैनेडा की गोरी सरकारों की यह एक कूटनीति थी। वे जानते थे कि भारत में कोई जहाज है नहीं, अतः भारतीयों का प्रवेश स्वतः ही रुक जायेगा। हांगकांग में इकट्ठे हुए भारतीयों ने एक धनाढ्य सिख बाबा गुरुदत्तसिंह (अमृतसर निवासी) से अपनी व्यथा कही। देशभक्त बाबा गुरुदत्तसिंह ने भारतीयों का कष्ट दूर करने के लिए १९१० म 'गुरुनानक स्टीम नेवीगेशन कम्पनी' की स्थापना की। इन्होंने 'कामागातामारू' नामक जापानी जहाज हांगकांग में एक जर्मन एजट के द्वारा किराये पर ले लिया और इसका नाम 'गुरु नानक जहाज' रखा। नेडा जाने वाले यात्रियों की बुकिंग प्रारम्भ करके शंघाई, मौज, योकोहामा के यात्रियों को लेकर यह कलकत्ता आया और यहां से भारतीय यात्रियों को लेकर फिर हांगकांग पहुंचा। हांगकांग से ४ अप्रैल १९१४ को चलकर २३ मई को यह कैनेडा के बैंकोवर बन्दरगाह पर पहुंचा। कैनेडा सरकार का असली चेहरा अब सामने आया। उसने सीधे पहुंचने वाले जहाज को न तो किसी बन्दरगाह पर टिकने दिया और न यात्रियों को उतरने दियाबन्दरगाह से दूर खड़े इस जहाज के यात्रियों के पास खाने-पीने के लिए भी पैसों की कमी होने लगी। कैनेडा सरकार ने दुखती रग पर एक और चोट की। जहाज का किराया किश्तों में देना था। कैनेडा सरकार ने जहाज के मालिक को बहका कर इस बात के लिए लोगों को बाध्य करवा दिया कि सारा किराया एक साथ देना होगा, तभी जहाज से उतरने दिया जायेगाभूखे-प्यासे यात्रियों पर एक और मुसीबत टूट पड़ी।
इस मुसीबत की घड़ी में कैनेडा में रह रहे देशभक्त बलवन्तसिंह, भागसिंह आदि साथियों का दल सहायता के लिए सामने आया। उन्होंने बत्तीस हजार डालर इकट्ठे करके जहाज के मालिक को देकर उसका चार्टर अपने नाम करा लिया और एक नया घाट खरीदकर वहां यात्रियों के उतरने की व्यवस्था कर दी। किन्तु पक्षपाती कैनेडा सरकार ने वहां भी यात्रियों को उतरने नहीं दिया। जहाज को वापस खदेड़ने के लिए एक पुलिस-दल भेज दिया। यात्रियों ने पुलिस दल को भगा दिया। फिर कैनेडा सरकार ने सैनिकों से भरा एक जंगी जहाज भेजा। अन्ततः विवश होकर २३ जुलाई को 'कामागातामारू' (गुरु नानक) जहाज को वापस भारत लौटना पड़ा। भारतीयों की सहायता करने वाले देशभक्तों पर भी कैनेडा सरकार ने जुल्म किये। कैनेडा के इमिग्रेशन (आप्रवासी) विभाग ने एक गद्दार के द्वारा बैंकोवर के गुरुद्वारे में भाई भागसिंह पर गोली चलवा दी। उस घटना में इनके साथ एक और साथी वतनसिंह भी मारे गये। उसके बाद बलवन्तसिंह आदि भी स्वदेश लौट आये थे।
अत्याचार और पक्षपात की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती अपितु बढ़ती चलती है। इसी बीच योरोप में प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ गया। यात्री भारत नहीं आना चाहते थे। उन्हें आशंका थी कि अंग्रेज सरकार वहां मनमाने जुल्म ढायेगी। किन्तु हुआ वही। हांगकांग, सिंगापुर, शंघाई आदि रास्ते के किसी भी बन्दरगाह पर जहाज को नहीं रुकने दिया। विवश होकर इसे कलकत्ता लौटना पड़ा। इस जहाज ने २७ सितम्बर १९१४ को प्रातः ११ बजे हुगली नदी के संगम पर बजबज नामक स्थान पर लंगर डालाअंग्रेजों के खुफिया विभाग ने इस जहाज के बारे में सरकार को खतरे की रिपोर्ट भेज रखी थी। इसलिए सरकार ने सभी यात्रियों को उतारकर जेल में नजरबंद करने की योजना बना रखी थी। अंग्रेज सरकार ने जहाज को घेर लिया और यात्रियों की सघन जांच की। कडे पहरे में उनको यहां से कलकत्ता ले जाया गया। (सम्पादक)
बजबज का गोलीकाण्ड
__'कामागातामारू' जहाज के यात्रियों को पंजाब ले जाने के लिए अंग्रेज सरकार ने कलकत्ता रेलवे स्टेशन पर एक नि:शुल्क ट्रेन खडी कर रखी थी। सरकार की योजना थी कि सभी को पंजाब ले जाकर जेल में बंद किया जाये। बजबज से कलकत्ता आकर यात्री इधर-उधर जाने लगे। सैनिक उन्हें बलात् ट्रेन में बैठा रहे थे। इस बात को लेकर दंगा भड़क गया। सेना की गोली से १८ निर्दोष सिख मारे गये। बाबा गुरुदत्तसिंह को भी गोली लगी किन्तु उनके साथी उन्हें कन्धे पर उठा कर कहीं ले गये। सरकार ने उनकी सूचना देने वाले को दस हजार का पुरस्कार देने की घोषणा की किन्तु उनका पता ही न चला। जिन लोगों को बलात् पकड़कर लाया गया उनमें से ३२ को जेलों में बंद कर दिया, शेष को जाने दिया। इस अवसर पर पंजाब के जो सिख भागने में सफल रहे उन्होंने पंजाब पंहुचकर पुलिस की नजरों से बचकर अंग्रेजी-अत्याचार के विरुद्ध क्रान्ति का शंखनाद कर दिया। आजादी के इतिहास में इन घटनाओं का गम्भीर और व्यापक प्रभाव पड़ा। 'गदर' समाचार पत्र की प्रेरणा से, विदेशों में वहां की गोरी सरकारों के अत्याचारों से विक्षुब्ध हुए प्रवासी भारतीयों के दल के दल भारत लौटे और उन्होंने देश के सभी हिस्सों में क्रान्ति की हलचल मचा दी। अंग्रेज सरकार देशभक्तो का दमन करने के लिए जहां 'मारो-काटो' की बर्बर नीति पर कठार होती गयी, देशभक्त भारतीय उतने ही 'करो या मरो' की नीति पर दृढ़ होते गये। (सम्पादक)