जेल में शहीद श्री भानसिंह

रूह कंपा देने वाली यातनाएं सहने वाले


जेल में शहीद श्री भानसिंह


      अंग्रेजों के पाशविक जुल्मों के शिकार निर्दोष नर-नारी भी हुए हैं, फिर क्रान्तिकारियों के साथ क्या बीती होगी, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। हाँ, भाई भानसिंह के जीवन-परिचय से उसका कुछ अनुमान लगाया जा सकता है। पाठक पढ़कर अनुमान लगायें कि देश की आजादी के लिए स्वतन्त्रता सेनानियों ने क्या-क्या अत्याचार सहा था !


      आपका जन्म जिला लुधियाना के सुनेत नामक गांव में हुआ। फौज की नौकरी छोड़कर आप अमेरिका चले गये और कैलीफोर्निया में रहकर आप गदर पार्टी के कार्यक्रमों में भाग लेने लगे। जब प्रवासी भारतीयों का अमेरिका आदि पश्चिमी देशों से भारत लौटकर देश की आजादी में योगदान करने का अभियान चला तो आप भी भारत लौट आये। जहाज में आप क्रान्ति का प्रचार करते रहे। परिणाम यह हुआ कि २९ अक्तूबर १९१४ को कलकत्ता पंहुचते ही आपको गिरफ्तार कर लिया गया। नवम्बर के अन्त तक मांट-गुमरी जेल में बंद रखने के बाद आपको छोड़ दियाइस घटना से कुछ क्रान्तिकारी आप पर सन्देह करने लगे, किन्तु आपने अपना प्रचार अभियान जारी रखा। पंजाब की क्रान्ति असफल होने के बाद जब गिरफ्तारी का दौर चला तो आपको भी पकड़ लिया गयाहत्या और डकैती के आरोप लगाकर अभियोग चलाया गया। ये सिद्ध न होने पर भी आपको आजीवन काला पानी की सजा सुना दी गयी। आतंक फैलाने और दमन करने के लिए अंग्रेज सरकार निर्दोषों के साथ ऐसा ही बर्ताव करती थी।


      आपको अंडमान द्वीप में ले जाकर सेल्युलर जेल में बंद कर दियावहां के जेल-अधिकारी अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात थे। क्रूर और निर्दयी स्वभाव के लोगों को वहां छांट-छांट कर भेजा जाता था ताकि देशभक्तों को कठोर-से-कठोर यातना दी जा सके। यही कारण था कि यहां अधिकारियों और कैदियों में सदा झगड़ा चलता रहता था। एक बार कोई उत्सव मना था। जेल-अधिकारियों ने राजनैतिक कैदियों को भी मिठाई बाद दी और कुछ कैदियों ने लेकर खा भी ली। भानसिंह उनकी इस बात पर बहुत रुष्ट हुए और उन्हें खरी खोटी सुनायी। देशप्रेमी कैदियों ने आपसे माफी भी मांग ली। इस बात की जानकारी जब जेल-अधिकारी को हुई तो उसने आपको भद्दी गालियां देकर अपमानित किया। आपने इसके विरोध में अगले दिन काम करने से इंकार कर दिया। जेलर ने आपको डंडा-बेड़ी पहनाकर काल कोठरी में बंद कर दिया और भोजन तथा पानी की आधी खुराक कर दीउस गर्मी प्रधान प्रदेश में आप प्यासे तड़पते रहते किन्तु पीने का पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता था। फिर भी देशप्रेम का प्याला पीकर आप इन भूख-प्यास के कष्टों को सहते रहे। कष्टों को सहन करते-करते आप दुःख-सुख, जीवन-संसार के भावों से ऊपर उठ चुके थे।काल-कोठरी में एक दिन आप मस्त होकर एक पंजाबी का भजन गाने लगे-


      “मित्र प्यारे नूं हाल मुरीदाँ दा कहना"


      अर्थात्- 'सबके प्यारे मित्र प्रभु को उनके भक्तों का हाल सुना देना।'


      जेलर ने आपको भजन न गाने का आदेश दियाआपको लगा कि ईश्वर की भक्ति में भी बाधा डालने वाला यह कौन होता है ? आपने भजन जारी रखा। दण्डस्वरूप आपको दूसरी मंजिल की तंग कोठरी में बंद कर दिया गया। किन्तु भजन वहां भी जारी रहा। फिर तीसरी मंजिल की ढाई वर्ग फीट की सन्दूकनुमा कोठरी में आपको बंद कर दिया गया। आपका भजन वहां भी जारी रहा। जेलर की क्रोध की सीमा न रही। उसने भानसिंह को पीटने की आज्ञा दी। इतना पीटा, इतना पीटा कि कई हड्डियां टूट गयीं। लेकिन प्रभु से लौ लगाने वाले इस देशप्रेमी भक्त को अब प्रभु के अतिरिक्त कुछ भी प्रिय नहीं रह गया था, न शरीर, न जीवन, न भोजन, न पानी। जेलर का अत्याचार भी प्रभु-भजन का गायन बंद नहीं करा सका।


      जेलअधिकारी उसे फिर मारने को दौड़े। तब तक अन्य कैदियों को भी इस अत्याचार का पता चल गया। उसे बचाने के लिए वे कैदी भी दौड़े किन्तु तीसरी मंजिल का द्वार बंद कर दिया। भानसिंह पर फिर मार पड़नी शुरू हुई किन्तु भजन चालू रहा। मार-पीट भी जारी रही और भजन भी जारी रहा....तब तक भजन जारी रहा जब तक भानसिंह बेहोश होकर न गिर पड़ा। अगले दिन उसकी हालत यह हो गयी कि मुंह में पानी जाना बंद हो गया। जेल-अधिकारी बदनामी के भय से यह नहीं चाहते थे कि कोई जेल में मरे। भानसिंह को जेल से बाहर एक होता ! मनुष्य शरीरधारी उन राक्षसों ने उनका जीवन तो जेल में ही छीन लिया थाऔर आखिर कुछ दिन के बाद वे अपने "प्यारे मित्र" प्रभु के पास "मुरीदाँ दा हाल" (भक्त शिष्यों का हाल) कहने के लिए उसकी शरण में चले गये। तथाकथित सभ्य अंग्रेजों के राज्य में भजन गाना भी मृत्युदण्ड योग्य अपराध था !


      पाठकवृन्द ! आप जान गये होंगे कि देशभक्तों ने क्या-क्या जुल्म सहे। ये लोग वास्तव में असाधारण पुरुष थे।


 


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