जीवन का मूल्य क्या

       जीवन का मूल्य क्या?


जसे हम किसी वस्तु का मूल्य चकाते हैं वैसे ही ये जीवन का मूल्य है। जीवन का अर्थ ही है अपनी जिन्दगी को अच्छी प्रकार से बिताना। सौ पैसों की इकाई एक रुपया, सौ रुपयों की इकाई एक सौ रुपये इसी प्रकार ऊँचे स्तर पर हजार, लाख, अरब, खरब आदि तथा इन सभी की इकाई होती है सम्पत्ति । इसी प्रकार से समय की भी विभिन्न इकाईयाँ होती है जैसे सेकेंड. मिनट घंटा दिन, माह, वर्ष तथा अन्त में इनकी इकाई होती है हमारी जिन्दगी अर्थात् जीवन। लेकिन आज के समय में हमें रुपयों के फालतू खर्च होने पर तो अफसोस होता है परन्त हमारे जीवन का बहुमूल्य समय खर्च होने पर हमें कोई भी दु:ख नहीं होता है। आजकल किसी तिजोरी में अपने रुपयों को रखकर यदि एक-एक करके भी नोटों को खर्च करते हैं, तो नोटों के कम होने पर हमें चिन्ता होती है। परन्तु प्रतिवर्ष हमारे जीवन का एक वर्ष कम होने पर हम यह सोचकर खुश होतें हैं कि हम बड़े हो रहे हैं। परन्तु हम यह ध्यान नहीं देते कि हमारी आयु का एक वर्ष कम हो चका है और जन्मदिवस पर बड़े-बड़े समारोहों का आयोजन करते हैं। हम इस बात पर ध्यान नहीं देते कि गतवर्ष का हमने पूर्ण रूप से सदुपयोग किया या नहीं। जैसे हम किसी दवाई की समाप्ति तिथि को देखकर यह सोचते हैं कि उस समाप्ति तिथि से पूर्व ही उस दवाई का प्रयोग किया जाए अथवा किसी को दे दें, जिससे उस |दवाई का सदुपयोग हो जाएकुछ रुपयों में मिलने वाली |उस दवाई की हमें इतनी चिन्ता होती परन्तु अपने इस |बहुमूल्य जीवन की समाप्ति तिथि क्या है? और इसका उपयोग कैसे किया जाए? यदि हम इस बात को ध्यान में रखें कि हमारे इस जीवन की समाप्ति तिथि सौ वर्ष है, और हमें इस सौ वर्ष के जीवन का सदपयोग करना चाहिए नहीं तो यह जीवन भी दवाईयों की तरह समाप्ति तिथि के आने पर समाप्त हो जाएगाशास्त्रों में कहा गया है कि - 'कालो अश्वो वहति' अर्थात् समय रूपी घोड़ा बहुत तेजी से दौड़ रहा हैअतः हमें अपने जीवन को ऐसा बनाना चाहिए कि अग्रिम पीढ़ी के लिये वह एक आदर्श के रूप में उभरकर सामने आये। जीवन भी दोप्रकार का हो सकता है, पहला ईमानदारी का तथा दूसरा बेईमानी का। अब हम अपने जीवन को कैसा बनाना चाहते हैं, वो हमारी विचारधारा पर निर्भर होता है कि हम किस प्रकार अपना जीवन यापन करना चाहते हैं। आज के समय में प्रत्येक प्राणी अपना जीवन व्यतीत कर रहा है। ऐसा सुना जाता है कि ८७ लाख योनियों के बाद हमें यह मानव का चोला मिला है। हम तो इतना भी नहीं जानते कि हम इस जन्म से पहले किस योनि में थे।अतः अपने जीवन को अच्छी प्रकार से व्यतीत करने के लिए एक सूत्र है, सदा ही निरोग रहें। क्योंकि निरोगी हम तभी रह सकते हैं, जब हम योग करें। आचार्य सुश्रुत ने भी कहा है कि एक जीवन को अच्छा जीवन बनाने के लिए अपने रहन-सहन, खान-पान आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि हम समय पर उठना, व्यायाम करना. खाना-पीना आदि सभी काम नियमित समय से करें तो हम सदैव ही निरोगी रह सकते हैं। आज वर्तमान युग मेंलोग अपने जीवन के ऊपर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहें हैं। खान-पान, रहन-सहन आदि सभी काम अपने समय में नहीं करते हैं। जिस कारण वे सभी रोगग्रस्त हो रहे हैं। वे अपने जीवन को सुख से नहीं बल्कि दुःख से व्यतीत कर रहें। अब यदि कोई व्यक्ति जिस डाल पर बैठा है। तथा उसी डाल पर छेद करे तो वह महामूर्ख ही कहलायेगा।। उसी प्रकार चेतावनी के बाद भी धूम्रपान, मद्यपान आदि का सेवन करके अपने जीवन रूपी की डाल पर कुल्हाड़ी चलानेवाला व्यक्ति भी महामूर्ख ही कहलायेगा।


अपने समय का सदुपयोग करना ही जीवन कहलाता है। राणा प्रताप के स्वामीभक्त घोड़े जो आज सेपाँच सौ वर्ष पर्व हुआ था. उसका नाम भी आज तक हमें याद हैऔर ऐसे ही हमारे अनेक महापुरुष ऐसे भी हुए कि जिन्होंने अपनी आनेवाली सन्तति के लिए ही सारा जीवन लगा दियाइनमें राम, कृष्ण आदि का नाम सबसे ऊपर माना जाता है। इनके बाद हमारे एक महान प्रेरक, एक आदर्श व्यक्ति के रूप में स्वामी दयानन्द सरस्वती जी भी हुए हैं, जिन्होंने पाखण्ड को मिटाया तथा स्त्रियों को विद्या ग्रहण करने का अधिकार दिया थाऐसे वेदोद्धारक हमारे आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का नाम भी बहुत ऊँचा रहा है। हमें उनके जीवन से कुछ शिक्षा लेनी चाहिए।


पशु व पक्षी घोंसला बनाते हैं, भोजन का प्रबन्ध करते हैं, सन्तानोत्पत्ति करते हैं और उन्हें पालते हैं। आजकल मनुष्य भी इन्हीं कामों में फंसकर अपने और पशु-पक्षियों के जीवन के मध्य अंतर को समाप्त कर देता है। मनुष्य को ईश्वर ने विवेक ही अधिक दिया है. वो इसलिए कि मनुष्य अपने सभी कर्मों को विचार पूर्वक मनन करके, पशुत्व वाले नहीं अपितु ऐसे कर्मों को करे, जिससे वो स्वयं को पशु-पक्षियों से भिन्न दर्शा सकेईश्वर ने हमें आत्मशक्ति, कल्पनाशक्ति, आकर्षणशक्ति, योगशक्ति, संगठनशक्ति आदि अन्य भी कई शक्तियाँ प्रदान की है। जिससे कि मनुष्य अपने जीवन को अच्छी प्रकार से यापन कर सके। परन्तु मानव केवल अपनी सम्पत्ति पर ध्यान दे रहा है। और अपने बहुमूल्य जीवन को गवाँ रहा है।


अतः आओ हम सभी अपने जीवन को एक सार्थक एवं अच्छे जीवन के रूप में व्यतीत करें। तथा समाज में एक आदर्श के रूप में स्थापित करें।


                                                                                               


                                                                                                      गुरुकुल पौन्धा 


 


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