जटिल समस्या

जटिल समस्या


         एक ओर श्री आनन्दप्रिय जी, मन्त्री, महर्षि दयानन्द स्मारक ट्रस्ट, टंकारा, “टकारा-पत्रिका' में लिखते हैं "टंकारा में एक अन्तर्राष्ट्रीय उपदेशक महाविद्यालय की स्थापना तत्काल होनी चाहिये-यह आदेश ट्रस्ट के प्रधान श्री मेहरचन्द जी महाजन का है। इस कार्य के लिए ट्रस्ट दो हजार रुपये मासिक खर्चने को तयार है। पर हमें सखेदाश्चर्य है कि दस तेजस्वी स्नातक या ग्रेज्युएट जो महर्षि के मिशन के स्नातक बन सकें हमें नहीं मिल रहे।"


       दूसरी ओर श्री बिशननारायण जी मुखी अपने १२ अगस्त के पत्र में मुझे लिखते हैं “हिन्दुस्थान टाइम्स की एक कटिंग भेज रहा हूँ । इसे पढ़कर आप प्रसन्न होंगे कि भारत के नेता अब वेदों की ओर आकर्षित होरहे हैं । प्रधान मन्त्री, सर्वोच्च न्यायालय के चीफ़ जस्टिस, राजस्थान के गवर्नर इस विषय में जो कहते हैं वह अति उत्साहजनक है । क्या हमारा वेदसंस्थान वेदों को पढ़ाने के लिए नियमित कक्षायें नहीं लगा सकता ?" 


       सविता के मुखपृष्ठ पर वेदसंस्थान के जो उद्देश्य अंकित हैं उनके अनुसार वेदसंस्थान की साध ही "वेद को विश्वधर्म बनाना, संस्कृत को विश्वभाषा बनाना और विश्व में वैदिक संस्कृति को प्रस्थापना करना है" । कल से नहीं, आज से ही वेदसंस्थान दिल्ली में वेद व संस्कृत की कक्षायें चालू की जा सकती हैं। समस्या वही है जिसका उल्लेख श्री आनन्दप्रिय जी ने किया है। आर्य जाति वैराग्य के गीत गाती है किन्तु व्यवहार में वह भौतिकता के राग में ग्रसित है । आर्य युवतियां और युवक वैदिक मिश्नरी बनने की कल्पना तक से सिहिर उठते हैं। वे तो कुछ और बनना चाहते हैं। आर्य माता पिता भी अपने पुत्रपुत्रियों को वैदिक मिश्नरी के बजाय कुछ और ही बनाना चाहते हैं।


        दोष टंकारा ट्रस्ट और वेदसंस्थान का भी है जब तक उच्च स्तर के विद्यालय और अध्यापक न होंगे और साथ ही जब तक वैदिक मिशन को अर्पित होनेवालों कोअपने मिश्नरी कैरिअर की प्रत्यक्ष गारण्टी न होगी, तब तक यह आशा करना कि तेजस्वी स्नातक या ग्रेज्युएट वेदोपदेशक बनने की ट्रेनिंग लेने आयेंगे दुराशामात्र है ।


        रामकृष्ण मिशन की वर्तमान आन्तरिक स्थिति का श्री आनन्दप्रिय जी को शायद पता नहीं है। उक्त मिशन को भी अब मिश्नरी नहीं मिल रहे हैं। केवल क्रिश्चिअन मिशन है जिसको धड़ाधड़ मिश्नरी तथा नन्स मिल रहे हैं और उसका कारण है उनकी उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थायें तथा मिश्नरियों के कैरिअर की निश्चित गारण्टी ।


        मेरा संकल्प है वेदसंस्थान के तत्त्वावधान में एक सुविशाल वेदविश्वविद्यालय की प्रस्थापना जिसमें भारत और विश्व के उच्चतम विद्वान् शिक्षक का कार्य करेंगे और उच्चतम शिक्षाप्राप्त साधक-साधिकायें विज्ञान के आश्रय सहित वेद, संस्कृत तथा योग की शिक्षा प्राप्त करके वैदिक मिश्नरी बनेंगे। उसका आरम्भिक व्यय पांच करोड़ रुपये होगा । उसी की पूर्ति के लिये मैंने चल वेदमन्दिर की योजना निर्धारित की है। इस युग में टंकारा ट्रस्ट या वेदसंस्थान की कोठरियों में रहकर वेदाध्ययन के लिए कोई कैसे तयार होगा। आज तो समस्त वैज्ञानिक सुविधाओं से सज्ज और सम्पन्न विश्वविद्यालय में ही कोई पढ़ाने या पढ़ने आयेगा।


         जहां तक वेदों की विश्वव्याप्ति तथा प्रचार का सम्बन्ध है, मुझे सन्तोष है कि मैंने और वेदसंस्थान ने पर्याप्त सफलता प्राप्त की है । संस्थान द्वारा प्रकाशित विदेहकृत वेदसाहित्य तथा मासिक सविता के आश्रय से देशविदेशों के सेकड़ों स्वाध्यायशील विद्वान् और विदुषियां अपने अपने क्षेत्र में वेदों का अध्ययन तथा प्रचार कर रहे हैं। पर सन्तोष के लिये इतना ही काफ़ी नहीं है । बहुत करना शेष है और वह अवश्य किया जायेगा। देर भले ही होजाए यद्यपि विलम्ब अवाञ्छनीय तथा अनिष्टकारी है।


                                                                                                                                                                              -विदेह


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