इच्छा करना ही पर्याप्त नहीं है


 इच्छा करना ही पर्याप्त नहीं है


        अधिकतर लोग अपने घर में चुपचाप पड़े रहते हैं। दुनियां में क्या होरहा है, इसकी उनको कोई परवाह नहीं होती। उनसे कोई पूछे कि ख़ामोश क्यों बैठे हो तो वे जवाब देंगे-अकेले हम क्या कर सकते हैं ? '


      अकेला भी नगण्य तो नहीं होतारेत का कण कितना छोटा होता है; पर वही अन्य कणों के साथ मिल कर समुद्र का किनारा बनाता है। पानी की बूद छोटी होती है; पर समुद्र उसी से बनता है ।


        सन्त भी आदमी ही होता है साढ़े तीन हाथ का। प्राणिमात्र से प्रेम का व्यवहार करके वह मानव से महा- मानव बन जाता है। आप सुख, शान्ति और आनन्द तो चाहते हैं, यश भी चाहते हैं; पर इसके लिए कर क्या रहे हैं ? जो आप चाहते हो उसके लिए आप कुछ कीजिए भी। केवल इच्छा करना पर्याप्त नहीं है । वैठे रहने से काम नहीं चलेगासफलता की चोटी पर पहुँचने वाले हर व्यक्ति ने बिलकुल नीचे से उठना प्रारम्भ किया था ।


         एक जलती हुई बत्ती कई वत्तियों के जलने के लिए सहारा बनती हैअपनी बत्ती जलायो दूसरों को भी बत्ती जलाने में मदद करो। तब अंधकार भागेगाअंधकार को कोसने के बदले एक बत्ती जलाना बेहतर है।


         इसलिए अपनी और दूसरों की भलाई के लिए, लक्ष्य को पाने के लिए केवल इच्छा ही मत रखिए । उठिए, आगे बढ़िये, काम कीजिए, धीरज धरिये और सफलता पाईये ।


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