हिन्दी और संस्कृत भाषाएँ


हिन्दी और संस्कृत भाषाएँ


       हिन्दी और संस्कृत दोनों भाषाएं देवनागरी लिपि में लिखी जाती हैं। देवनागरी लिपि और संस्कृत भाषा उतनी ही पुरानी हैं जितनी पुरानी यह सृष्टि यानि लगभग दो अरब वर्ष पुरानी। सृष्टि के आरम्भ से लेकर आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व तक सारे संसार में एक ही भाषा थी-संस्कृत तथा एक ही लिपि थी-देवनागरी। उस समय के संस्कृत ग्रन्थ अतुलनीय ज्ञान के भण्डार हैं तथा संस्कृत एक सम्पूर्ण तथा मधुरतम भाषा है। संसार में केवल देवनागरी लिपि ही ऐसी लिपि है जिसमें सभी ध्वनियां हैं। सभी अक्षर तथा शब्द जैसे लिखे जाते हैं वैसे ही पढ़े व बोले जाते हैं। सभी अक्षरों की ध्वनियां स्वाभाविक हैं। इस कारण से संस्कृत भाषा आसानी से सीखी जा सकती है।


      आर्य (हिन्दी) भाषा संस्कृत का अपभ्रंश (बिगड़ा हुआ) रूप है। आर्य भाषा की लिपि तो संस्कृत वाली देवनागरी है ही, बहुत से शब्द भी संस्कृत भाषा के ही हैं। हिन्दी भाषा में सबसे अधिक शब्द जिस भाषा में से हैं वह संस्कृत ही तो है। संस्कृत व हिन्दी भाषाओं तथा देवनागरी लिपि को अपनाने का अर्थ होगा संसार की सर्वोत्तम लिपि को अपनाना तथा अतुलनीय व अनन्त ज्ञान के भण्डार वेद आदि सत्शास्त्रों की रक्षा व प्रचार कर मानवमात्र का कल्याण करना। मानवमात्र को भाई बताने वाली संसार में अगर कोई विचारधारा है तो वह यही वैदिक संस्कृति है। वैदिक संस्कृति को मानने वालों ने कभी दूसरों पर अत्याचार नहीं किए, दूसरों के धन व पदार्थ नहीं छीने और न ही दूसरों की बहू बेटियों की इज्जत लूटी है ।


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