हे प्रभो ! हमें अभय दीजिए


अथर्व वेद का मंत्र है-


                             अभयं मित्रादभयममित्रादभयं ज्ञातादभयं परोक्षातु ।
                             अभयं नक्तमभयं दिवा नः सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु ।।  अथर्व १९/५/ १६


            अथर्व वेद के इस मन्त्र ने, चित्त में गहरी छाप छोड़ी थी गहराई में जा कर, सोचने-विचारने का विचार सुष्त/कारण अवस्था में, चित्त ( हाई डिस्क ) में पड़ा रहा अभी तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु लेख को सजाने-संवारने का काम चल ही रहा था । विचार बन रहा था कि इसके बाद क्या लिखना होगा ?


             प्रभु ! ने रात तीन बजे उठा दिया शांति प्रकरणम् के उपरोक्त, मंत्र पर विचार कर ।


            कालातीत प्रश्न है इसीलिये तो वेद में है, अंतिम सत्य और अंतिम प्रमाण के रूप में । सतही रूप में निष्कर्ष निकालना भी कठिन नहीं है पर बात गहरी है ।


            पूर्ण भय मुक्त अवस्था में ही, मानव-मस्तिष्क पूर्ण एकाग्रता से, अनन्त आकाश की ऊंचाइयों तक पहंचता है । ब्रह्मांड में विचरण करता हुआ मन, प्रभु की निकटता का अनुभव कर, अनमोल उपलब्धियां प्राप्त करता है जन कल्याण के लिये, ऐसा महामानव, उन्हें वाणी में शब्दों मे ढाल कर सम्पूर्ण विश्व को सुलभ कराता है l 


               यज्ञों को विध्वंस करने वाले मानुषों को, राक्षसी संज्ञा देकर उनके समूल नाश के निमित्त. महर्षि विश्वामित्र, महाराज दशरथ के दोनो पुत्रों - राम और लक्ष्मण को, राजपाठ के सखा से दवा कर. दर घने जंगलों में ले गए । राजा एवं राजमहीषिणियां एक शब्द तक नहीं बोल पाई । यह थी आर्य संस्कृति । राम और लक्ष्मण की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग भी हो जावेगी l


             आचार्य सत्यानन्द नैष्ठिक एम. ए. (वेद-संस्कृत) की अत्यन्त दुर्लभ कृति वैदिक नित्य कर्म एवं पञ्चमहायज्ञ विधि में दिया अर्थ, यथावत प्रस्तुत है-


               हे प्रभो ! आपकी कृपा से मित्र से अभय हो, शत्रु से भी भय न रहे । प्रत्यक्ष में अभय हो, परोक्ष में अभय हो, रात्रिकाल में अभय प्राप्त हो, दिवस काल में अभय प्राप्त हो, सब दिशाएं मेरी मित्र-स्नेह


             युक्त और हानि रहित हो जावें, आपकी कृपा से हमें, सब ओर से, सब समय में, अभय प्राप्त हो और हम निर्भय बनें । सुभाषित का पूर्वार्द्ध है -


                                   सुभाषित आहार, निद्रा भय मैथुनं च
                                   सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्


              अर्थ सरल है, स्पष्ट है । पशुओं और मानवों में आहार, निद्रा, भय और मैथुन एक समान विद्यमान होते हैं पशु से तात्पर्य समस्त प्राणिजगत से है l 


                पशुओं की बात निकली तो स्मरण आ रहा है कि किशोर आयु में वनराज शेर को भयभीत अवस्था में देखा था और वह भी वन के रास्ते में देवखो, ग्वालियर शिवरात्रि पर्व के लिये जा रहे थे सुरम्य पहाड़ियों के बोच, जलप्रवाह हो रहा था । ऊपर पहाड़ पर शिव मन्दिर है बाऊजी, टेम्पल इन्सपैक्टर पद पर आसीन थे । सिंधिया वंश के गगांजली फन्ड से पोषित यह शिवमन्दिर विशेष स्थान रखता था । शिन्दे शासक शिकार के लिये यहां आते थे उनके विश्राम के लिये रेल का डिब्बा रखा हुआ है । व्यवस्था के लिये बाऊजी जाते थे और हम लोगों की शानदार पिकनिक होती शाम का समय था । सूयास्त हो ही रहा था । मंदिर से ४-५ किलोमीटर पहिले, सड़क के मोड़ पर, नीम के पड़ के नीचे, जंगल का राजा शेर, दो गायों को घेर कर खड़ा था । आक्रमण की हिम्मत नहीं कर पा रहा था । दोनो गाएं कांपती हुई, बार-बार सू.सू कर रही थी गाएं शेर से डर रही था दो थी इसलिए शेर उनके सीगा के प्रहार से भयभीत था । पक्का शिकारी था । सूयास्त की प्रतीक्षा कर रहा था अंधकार बढ़ने लगा था । शेर की आखें प्रदीप्त हो उठीं । गाएं की आंखों में उतनी रोशनी कहां ? अंधेरा थोड़ा और गहराया । झपट्टा मारा और एक गाय को घसीट कर जंगल के अन्दर ले गया । कहानी का अंतिम अंश ग्रामीणों से सुबह पता चला । जंगल का राजा भैसों का शिकार भी आसानी स नहा कर पाता क्योकि भैसों का झण्ड, गोल घेरा बनाकर, आक्रामक मुद्रा में आ जाता हैं । जंगल का राजा, भय के कारण, भाग खड़ा होता है ।


                सम्पूर्ण विश्व के सामाजिक परिवेश में भय का आकलन भी भयावह विज्ञान की व्यापक उन्नति से अणुबम पर एकाधिकार अब केवल महाशक्तियों तक सीमित नहीं रह गया है । अन्य राष्ट्र भी परमाणु बम की शक्ति, से सम्पन्न हो गए हैं।


              विश्व १९१४-१८, व १९३९-४५ दो महायुद्ध देख चुका है। दोनों युद्ध ५-५ वर्ष की अवधि तक चले । दोनो युद्धों में केवल मृत सैनिको की संख्या (नब्बे लाख + २३० करोड़ ) + ३.३० कर है । घायल युद्धजन्य ,बीमारियो से मृतको की संख्या बहत अधिक है। दूसरे महायुद्ध में परमाणु बम का प्रयोग हुआ था । विश्व शांति की स्थापना में १९२० में लीग ऑफ नेशन्स को स्थापना हुई और


               १९४५ में UNO संयुत्त, राष्ट्र संघ की स्थापना हुई । १९४५ के बाद अभी तक तो विश्व युद्ध की नौबत नहीं आई है पर भय बना हुआ है परमाणु हथियार में मारकशक्ति का अत्याधिक विस्तार हो चुका है । अब अनेक राष्ट्रों के पास आणविक अस्त्र-शस्त्र हैं ।


                इस्लामिक शक्तियां कुरान आधारित इस्लाम के विस्तार के लिये अत्याधिक व्याकुल हैं । सम्पूर्ण विश्व में मुस्लिम आतंकवाद का नाच हो रहा है इस्लामिक राष्ट्र स्वयं ही आपस में जमकर वर्षो से रक्तपात कर रहे हैं और उधर उत्तर कोरिया का तानाशाह विश्वशांति के लिये भयंकर खतरा बन चुका है वैश्विक शांति की स्थिरता के लिये विकासशील देशों में अग्रगण्य भारत की भूमिका है विश्व की गणमान्य शक्तियों में उसका स्थान बन जाना सुनिश्चित हो गया है । केवल चीन की वीटो शाक्ति भारत का सुरक्षा परिषद में प्रवेश का मार्ग अवरुद्ध किए हुए है।


            ७० साल आजादी प्राप्त होते हुए व्यतीत हो चुके हैं। काफी आर्थिक सुधार हुआ है सुधारों की सुद्धढ़ नीव पड़ी है लेकिन सामाजिक समस्याओं में वृद्धि हुई है । जातिगत - आरक्षण केवल १० वर्ष के लिये था जो अब तक स्थिर आकार ले चुका है । सामाजिक असंतोष बहुत अधिक बढ़ गया है । मुस्लिम तुष्टीकरण के संस्थापक बैरिस्टर मोहनदास करमचन्द गांधी ने तुर्की के खिलाफ आन्दोलन का समर्थन करके डाली थी आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने गांधी जी के इस समर्थन का विरोध किया था इसी नीति के कारण भारत का विभाजन हुआ । भयंकर रक्तपात मे २० लाख से अधिक जानें गई ।


           काश्मीर की समस्या खड़ी कर दी कबाइलियों की आड़ में पाकिस्तानी सेना काश्मीर के भूभाग पर कब्जा जमा चुकी थी काश्मीर का अंसतोष मुस्लिम और शेष भारतीय जन में अंशाति का, भय का वातावरण बना चुका है । २ करोड़ से अधिक प्रकरण अदालतों में निराकरण के लिये लम्बित पड़े है। कितने अपराधी जेलों में बन्द है अपराध का कलंक लेकर निकलने पर पुन: अपराध की दुनिया में खोजने को विवश । २-४ वर्ष की अबोध बच्चियां बलात्कार, हत्या का शिकार हो रही हैं । शिक्षा प्राप्त करने के लिये विद्यालयों से आना-जाना भयंकर संकट बन गया है । मार्ग में सुरक्षा नहीं है चाकू छुरे बाजी, गोलीबारी की घटनाएं भय के वातावरण को ओर घना कर रही हैं l


            कांग्रेस के ही स्वर्गीय प्रधानमंत्री - मूत्रज्ञान विशेषज्ञ मोरारजी देसाई से भय मुक्त भारत का नारा सुना था एक ओर भयमुक्त भारत निर्माण का आह्वान दूसरी ओर महिलाओं के लिये सन्देश कि रात आठ बजे के बाद घर से बाहर निकलना ही नहीं चाहिए ।


             मोदीजी से, पहिले से ही गुजरात सम्पूर्ण भारत में महिलाओं के लिये सबसे अधिक निरापद स्थान था, है भी । रात १२ बजे के बाद भी युवतियां घर पहुंच जाती है । बड़ौदा और अहमदाबाद के दीर्घकालीन प्रवास में हम स्वयं देख चके हैं । भय मक्त वातावरण मोदीजी अच्छी तरह जानते हैं, पहचानते है । सफाई अभियान भयमुक्त भारत निर्माण का प्रारम्भ था l


             भय को भय से ही मुक्त किया जा सकता है । इस कला के वह विशेषज्ञ हैं - भय की सीमा का निर्धारण भी उनकी सुविचारित नीति का अंश होता है भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री के पद, अधिकार, सत्ता व पार्टी में उनकी मजबूती से भलीभांति परिचित मुख्यमंत्री मोदी ने अत्यन्त विनम्र शब्दों में कह दिया था कि गोधरा काण्ड में उन्होंने राजधर्म ही निभाया है । प्रधानमंत्री मोदीजी ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक कर भारतीय सैन्य बल की क्षमता का विश्वास न केवल पाकिस्तान को बल्कि सभी कुरानी ताकतों को दिखाई ही दिया था बल्कि विश्व शक्तियों में यह धाक भी जमा दी कि राष्ट्र सुरक्षा के लिये वह कहीं तक भी जा सकते हैं । आज उन्हें विश्व नेताओ में मान्य किया जा रहा है ।


            काश्मीर समस्या निराकरण के लिये अनेक उपाय किए हैं, कर रहे हैं काश्मीर में, शासन में गठजोड़ सरकार में शामिल होना बहुत बड़ी बात है । निरंकुश मुस्लिम सत्ता पर सीधा अंकुश आतंकियों के भय से बन्द पड़े शिक्षा संस्थानों में पुनर्भध्यापन की व्यवस्था बोर्ड परीक्षाओं का संचालन । मोदीजी ने ही कहा था कि बच्चों के एक हाथ में कुरान और दूसरे में कम्प्यूटर होना चाहिए । नोटबन्दी से पाकिस्तानी अर्थ व्यवस्था पर, आंतकवादी शक्तियों को अकूत धन, नकली नोट छापना सब ओर से शिकंजा कसा जा रहा हैअब मोदीजी ने नारा दिया- गाली से नहीं गोली से नहीं अब कश्मीरियों को गले लगा कर, भारतीय समाज की मुख्य धारा में जोड़ना है । तीन तलाक का मामला सुप्रीम कोर्ट में तलाक विरोधी के रूप में केन्द्र शासन ने लड़ा । उसके निर्देश पर संसद के शीतकालीन अधिवेशन में बिल लाया जा रहा है । मुल्लामौलवियों की दुकाने बन्द । भारत विरोधी आवाज में भी बेहद कमी आई है ।


            मोदीजी का यशोगान करना मेरा उदश्य नहीं है मुझे तो उस नर-नाहर से परिचित कराना है जो केवल भारत में ही नही, सम्पूर्ण विश्व की उन शक्तियो को भी बल प्रदान करना है जो विश्व - शांति स्थापना के कार्य में जुटी हुई हैं । भारत का कोई सामाजिक उद्देश्य नहीं है । लेकिन कुत्त के काटने के बाद, पोड़ा दायक इन्जक्शेन लगवाने के स्थान पर, कुत्ते को कांजी हाउस में बन्द करवाना , पागल कुत्ते को मरवाना ज्यादा उपयुक्त समझते हैं । किया भी वही जा रहा है । सनाध्यक्षा को सीधे रक्षामंत्री व प्रधानमंत्री से आवश्यकतानुसार मिलने की पूर्ण सुविधा है । निर्देश भी स्पष्ट मिलते हैं। सेनाएं पूरी कर्तव्य निष्ठा से उनका पालन कर रही हैं । नक्सलवाद पर भी अंकुश लगा है l 


              हमें तो उमर अब्दुल्ला के कथन को कार्यान्वित करना है, कराना है । मोदीजी को २०२५ तक पराजित नहीं किया जा सकता ।


लेखक- अभिमन्यु कुमार खुल्लर
सेवानिवृत वरिष्ठ लेखाधिकारी (केन्द्र)
स्थायी पता - २२ नगर निगम क्वार्टर्स, जीवाजीगंज, लश्कर
ग्वालियर - ४७४००१ म.प्र.
e-mail- khullar2010@gmail.com



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