हमें भी आँख और कान दो


हमें भी आँख और कान दो


      गुरुकुल से निकले स्नातकों को देवगण, पितरगण और सामान्य जनता जहाँ देखने के लिए, आशीर्वाद देने के लिए आँखें बिछाए है, वहाँ सामान्य जनता उनसे याचनापूर्वक कहती है-चक्षुः श्रोत्रं यशो अस्मासु धेह्यन्नं लोहितमुदरम्-हमें आँखें दो, हमें कान दो, हमें यश दो, अन्न दो, लहू दो, उदर दो। मानो लोग देख नहीं पा रहे, सुन नहीं पा रहे, अन्धे और बहरे हो गए हैं, उनकी कीर्ति और यश धूमिल हो गए हैं, उन्हें सुपाच्य अन्न नहीं प्राप्त हो रहा, रक्त की कमी हो गई है और उदर से पाचन-शक्ति भी जाती रही है, अतः वे आँखें लगाए हुए याचना कर रहे हैं-चक्षुः श्रोत्रं यशो अस्मासु धेहि...... 


      हमने जनता-जनार्दन की इस याचना में यह पाया है कि स्नातकों में तीन प्रकार के व्रती हैं, तीन प्रकार के वर्णी हैं जिनसे यह अपेक्षा की जा रही है। ब्राह्मणव्रती से कहा जा रहा है-हमें आँखें और कान दो, क्षत्रिय-व्रती से कहा जा रहा है हमें यश और कीर्ति दो, वैश्य-व्रती से कहा जा रहा है कि हमें अन्न, रुधिर और उदर दो।


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