हमने हँसने का उपदेश दिया है

हमने हँसने का उपदेश दिया है(महर्षि दयानन्द सरस्वती)


             जब दयानन्द जयपुर से प्रस्थान करने लगे, तब अनेक भक्तों के प्रेमाश्रु टपकने लगे । विनोदी दयानन्द ने उन्हें उद्बोधन देते हुए कहा-'मन को भारी मत करो। हमने तुम्हें हँसाने वाला उपदेश दिया है, रुलाने वाला नहीं।" स्वामीजी कार्तिक वदि नवमी संवत् १९२३ को प्रागरा जा विराजे । मौखिक उपदेशों के अतिरिक्त स्वामीजी ने पाठ पृष्ठ की एक छोटी-सी पुस्तक भागवर खण्डन पर लिखी। इसकी कई सहस्त्र प्रतियां छपवाकर वहीं वितरित करा और कई सहस्र हरिद्वार कुम्भ पर बाँटने के लिए मथुरा जाते हुए अपने साथ गये।


                                                      महर्षि दयानन्द सरस्वती जीवन चरित्र 


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