हम तेरे हो जाएँ!
हम तेरे हो जाएँ!
यस्मै त्वं सुद्रविणो ददाशोऽ नागास्त्वमदिते सर्वताता
यं भद्रेण शवसा चोदयासि प्रजावता राधसा ते स्यामा
ऋषिः-कुत्स आङ्गिरसः॥ देवता-अग्निः ॥छन्द:-त्रिष्टप
विनय- हे प्रभो! हम तेरे ही हो जाएँ। हम चाहते हैं कि हम अपने न रहें है. जाएँतेरे होने से हम तर जाएँगे, परन्तु तेरे हो जानेवाले वे सौभाग्यशाली पर जिनके लिए तू 'निरपराधत्व' का वर प्रदान कर देता हैऐसे पुरुष नाना प्रकार के किया करते हैं, किन्तु उनके सब कर्म-विस्तार में तुम्हारी कृपा से सदा निर्दोषता रहती है। हे अखण्ड! हे पूर्ण अग्ने ! तेरे सहारे किये गये कर्मों में अपूर्णता, दोष, त्रुटि कैसे रह सकती है? तू अदिति है, तुझमें दिति, खण्डता व बन्धन नहीं है, अतः तेरे हो चुके, तेरे अनन्य उपासक के कर्म भी खण्डित व दोषयुक्त क्यों होंगे? तेरे ऐसे भक्तों के भयङ्कर-से-भयङ्कर दीखनेवाले कर्म भी निर्दोष व उचित ही होते हैंधन्य-धन्य हैं वे तेरी कृपा पानेवाली विशुद्ध आत्माएँ, जिनके सब कर्म-प्रवाहों में, हे सुद्रविण ! हे शुद्ध बल व धनवाले! तुम ऐसी निष्पापता प्रदान करते हो। हम देखते हैं कि इससे उनका भी बल (शवस्) और धन (राधस्) असाधारण प्रकार का हो जाता है। उनका बल सदा 'भद्र' होता है और उनका धन 'प्रजावान्' होता है। उनमें तू जिस प्रकार के बल की प्रेरणा करता है वह बल भद्र होता है, कल्याण के : लिए होता है। वह दुर्बलों के सताने व आत्महनन में लगनेवाला अभद्र बल नहीं होता, किन्तु आत्मोन्नति कराने में, दु:खितों-पीडितों की रक्षा में निरन्तर लगनेवाला बल हाता । एवं, उनका धन-ऐश्वर्य 'प्रजावान्' होता है, प्रजनन करनेवाला-उत्पादक है।" अनुत्पादक धन नहीं होताउनका ऐश्वर्य कुछ भी सृजन न करनेवाला नहीं होता सदैव उत्तरोत्तर उत्तम-उत्तम परिणाम लानेवाला होता हैओह ! ऐसे धन क साथ के साथ हम तेरे हो जाएँ हे अदिते ! निष्पाप होकर हम तेरे हो जाए!
शब्दार्थ-अदिते =हे अखण्डस्वरूप अग्ने! त्वम = तुम यस्मै = जिस सर्वताता = उसके सब कर्म-विस्तार में, सब कर्मों में अनागास्त्वम् = निरपराधता निर्दोषता ददाश:=प्रदान करते हो और यम् = जिस पुरुष को तुम सुद्रविण:=हे सुन्दर बल व धनवाले! भद्रेण शवसा-कल्याणकारक बल से तथा प्रजावता राधसा = उत्पादक धन से , अनुप्राणित= करते हो, वैसे होते हए हम ते = तेरे स्याम- हो जाए चोदयासि=प्रेरित