हम शरण तेरी आये हुए हैं
हम शरण तेरी आये हुए हैं
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी! हम शरण तेरी आये हुए हैं।
गैरों से अब न कोई गिला है, हम स्वयं के सताये हुए हैं ॥१॥
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी!.......
दुर्व्यसन दुर्गुणों का हूँ संगम, सद्गुणों का रहा हूँ मैं निर्गम।
तुम हो सर्वज्ञ प्रभु कैसे कह दूँ, दूध के हम नहाये हुए हैं ॥२॥
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी!..........
मोह-माया-ममता का हूँ अनुचर, कोल्हू के बैल सा खाता चक्कर।
तेल तिल में न तन में है कण भर, जुआ फिर भी उठाये हुए हैं ॥३॥
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी!.........
हमदमों में न अब कोई दम है, सूनी-सूनी सहमी-सहमी सरगम है।
बेसुरे साज हैं पर तरन्नुम, तेरा ही गुनगुनाये हुए हैं ॥४॥
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी!........
घाव घातों के घातक लगे हैं, साथी सब सौत जैसे सगे है।
प्रभु करो फैसला कर्मों का हम, क्रास कन्धों पर लाये हुए हैं ॥५॥
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी!......
कर्म फल जो भी देना हो देना, पर विनय इतनी है मान लेना।
दण्ड में बुद्धि प्रभु हर न लेना, आप जिसमें समाये हुए हैं ॥६॥
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी!..
कहलाते हो भक्तों के रखवाले, नंगे पैरों ही दौड़ आने वाले
पथ में पलकें बिछाये दरस को, टकटकी हम लगाये हुए हैं ॥७॥
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी!........
जन्मदाता हो पितु-मात-भ्राता, अखिल विश्व के हो विधाता।
हो तुम्ही त्राता मुक्ति प्रदाता, आस निशि-दिन लगाये हुए हैं ॥८॥
सच्चिदानन्द सर्वान्तर्यामी!......