गुजरात पर भीषण हमला, सोमनाथ-पाटन तबाह, मुसलमान बने मुगल

गुजरात पर भीषण हमला, सोमनाथ-पाटन तबाह, मुसलमान बने मुगल


विजय मनोहर तिवारी


        दिल्ली पर कब्ज़ा जमाने के बाद अलाउद्दीन खिलजी का सबसे पहला निशाना बना गुजरात। यहाँ के राजा का नाम कर्ण है। एक बड़ी फौज अलाउद्दीन के भाई अलमास बेग की अगुवाई में गुजरात के लिए रवाना की गई। अल्मास बेग को उलुग खां की उपाधि दी जा चुकी थी। आइए बिना देर किए सीधे चलते हैं जियाउद्दीन बरनी के पास। वह बता रहा है-


        “नहरवाला और गुजरात के इलाकों का विनाश कर दिया गया। गुजरात का राय कर्ण नहरवाले से भागकर देवगिरि में रामदेव के पास चला गया। राय कर्ण की औरतों, बेटियों, खजाने और हाथियों पर इस्लामी सेना ने अपना कब्ज़ा जमा लिया।


          गुजरात की सारी दौलत लूट ली गई। वह मूर्ति, जिसे सुलतान महमूद की फतह और खंडन के बाद सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध कर दिया गया था और जिसे हिंदू अपना भगवान मानते थे, दिल्ली भेज दी गई। दिल्ली में वह लोगों के पैरों तले नीचे रौंदने के लिए डाल दी गई।”


        यह 1299 का साल है। अन्हिलवाड़ या अन्हिलपुर को ही नहरवाला कहा गया है, जो तब के गुजरात की राजधानी थी, जिसे आज पाटन कहते हैं। अब आप गौर कीजिए। हम 1235 में विदिशा और उज्जैन में इल्तुतमिश का हमला देख चुके हैं। इल्तुतमिश उज्जैन पर हमले के बाद लूट के माल के साथ राजा विक्रमादित्य और महाकाल की मूर्तियों को भी दिल्ली ले गया था, जिन्हें वहाँ निर्माणाधीन मस्जिद की सीढ़ियों पर डाला गया था।


         सात दशक बाद मोरक्को से आए यात्री इब्नबतूता ने महरौली में ताजा बनी कुतुबमीनार के पास इन मूर्तियों को देखा था और अपनी डायरी में दिल्ली में मशहूर उज्जैन की उस लूट की कहानी को दर्ज किया था। अब दिल्ली से गुजरात को मटियामेट करने आई अलाउद्दीन खिलजी की लुटेरी फौज ने वही काम यहाँ किया। यह सोमनाथ पर महमूद गजनवी के बाद दूसरा इस्लामिक हमला था। यानी गजनवी के हमले और लूट के बाद खंडित किए जा चुके सोमनाथ के मंदिर का निर्माण स्थानीय हिंदू समाज ने फिर से कर लिया गया था।


        उलुग खां के दूसरे साथी नुसरत खां ने इसी धावे में खंभात का रुख किया और वहाँ से भी बेहिसाब लूटमार करके लौटा। एक शख्स भी लूट के माल में साथ लाया जाता है। उसका नाम है-काफूर हजार दीनारी। उसे उसके मालिक से जबर्दस्ती छीना गया था। महाराष्ट्र में देवगिरि पर हमले और लूट के बाद दिल्ली में खुद को सुलतान घोषित करने वाले क्रूर अलाउद्दीन खिलजी को गुजरात में वैसा ही तजुर्बा हुआ। बरनी बताता है कि गुजरात का विध्वंस करने के बाद उसकी फौजें अकल्पनीय धन-दौलत लेकर लौटीं।


      अब से 720 साल पहले के समृद्ध गुजरात की इस लूट से लौटते हुए रास्ते में एक अलग दृश्य सामने आता है। इसे देखने के पहले लूट के माल के बँटवारे का हिसाब समझ लीजिए। इस्लामी कायदों के मुताबिक लूट के माल में से पाँचवा यानी 20 फीसदी हिस्सा लुटेरों यानी फौजियों में बाँटा जाता था। लुटेरों का सरगना यानी खुद को सुलतान या बादशाह कहने वाला भी अकेला पाँचवे हिस्से यानी 20 फीसदी का हिस्सेदार होता था।


      गुजरात से लौट रही इस जोशीली फौज में क्या चला, यह देखिए। गुजरात के कोने-कोने से इतना माल मिला कि उलुग खां और नुसरत खां को लगा कि फौज के लोगों के पास भी काफी माल है, जो वे छुपाकर ले जा रहे हैं। ये हजारों में थे। हरेक से कड़ी पूछताछ शुरू की गई।


       लूट के छुपे हुए माल के शक में उन्हें सरेआम बेइज्ज़त किया गया। वे अपने हिस्से की लूट में से जो कुछ भी अपनी तरफ से लिखवाते, उस पर कोई भरोसा ही नहीं कर रहा था। उनसे और ज्यादा मांगा जाता था। सरदार जानते थे कि वे मालामाल गुजरात को लूटकर लौटे हैं। वहाँ की मिल्कियत सबने देखी थी। सोना, चांदी, जवाहरात और दीगर बेशकीमती सामान राजा के खजाने और मालदार लोगों से जबर्दस्ती निकलवाया गया।


       फौज के लोगों से इतनी मारपीट की गई कि वे बुरी तरह परेशान हो गए। एसामी नाम के लेखक ने भी गुजरात की इस लूटमार के ब्यौरे दर्ज किए हैं। वह भी कुछ बता रहा है-


         “राय कर्ण अपनी दौलत और रानियों को छोड़कर भाग निकला। तीसरे दिन शाही लश्कर पाटन पहुँचा। तीन दिन तक लूटमार हुई। रास्ते में उलुग खां ने सरदारों से कहा कि सैनिकों ने बेहिसाब लूट की है लेकिन किसी ने भी सुलतान का हिस्सा अलग नहीं किया है। शिविर के सामने ही लूट का माल एकत्रित कराया गया। लोगों ने लूटा हुआ सोना तो पेश कर दिया लेकिन मोती छिपा लिए। उलुग खां ने हरेक शिविर में पूछताछ कराई और सुलतान का हिस्सा वसूल किया।”


        यह दृश्य किसी जंगल में एक शिकार को नोचने के लिए अपना अधिकतम हिस्सा हड़पने के लिए चीख-पुकार करने वाले चील-गिद्ध, सियार-लकड़बग्गों का है। उन्हें दिल्ली पर कब्ज़ा हुए 100 साल हो चुके थे।


       अब तक हमने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के इलाकों को पहली बार और फिर कहीं-कहीं बार-बार लुटता-पिटता हुआ देखा, लेकिन लूट के कीमती सामान को लेकर अपने ही लुटेरों के साथ मारपीट और वसूली का ऐसा नजारा पहली बार गुजरात से दिल्ली के रास्ते में दिखाई दिया।


         बरनी बता रहा है कि इस तरह वसूली, बेइज्ज़ती और मारपीट से तंग आकर नव-मुसलमान और सवार एकजुट हो गए। ये नव-मुसलमान मूलत: मुगल थे, जिन्होंने हाल ही में इस्लाम कुबूल किया था।


         नव -मुसलमानों का करीब 3,000 का गुस्सैल गिरोह फौज में बगावत पर उतारू हो गया। नुसरत खां के भाई मलिक अइज्जुद्दीन को मार डाला गया। वे शोर मचाते हुए अलाउद्दीन खिलजी के भाई उलुग खां के शिविर में जा घुसे। वह किसी तरह भागकर नुसरत खां के पास जा पहुँचा।


        अलाउद्दीन खिलजी का भांजा उलुग खां के शिविर में सो रहा था। उसे ही उलुग खां समझकर भीड़ ने कत्ल कर दिया। पूरी फौज में हाहाकार की हालत हो गई। ये बागी लुटेरे भाग निकले और कुछ हिंदू राजाओं के पास चले गए। लश्कर में लूट के माल को लेकर पूछताछ तत्काल प्रभाव से बंद कर दी गई। जैसे-तैसे उलुग खां और नुसरत खां गुजरात की इस बेहिसाब दौलत के साथ दिल्ली में दाखिल हुए। लेकिन हिसाब अभी बाकी था।


       एसामी ने तो इन बागी मुगलों के नाम भी बताए हैं- कमीजी मुहम्मद शाह, काभरू, यलचक और बर्क। वह बताता है कि ये पहले मुगल थे और अब मुसलमान हो गए थे। वसूली में बरती गई बेरहमी से गुस्साए इन नव-मुसलमानों ने बगावत कर दी। एक आदमी का सिर काटकर भाले की नोक पर चढ़ाकर सेना में घुमाया।


         लेकिन नुसरत खां के पलटवार से यह अफरातफरी काबू कर ली गई। बागी नए मुसलमानों में से यलचक और बर्क राजा कर्ण के पास भाग गए और कमीजी मुहम्मद शाह और काभरू रणथंभौर के किले की ओर चले गए।


          दिल्ली में अगर आज की तरह अखबार होते तो अगले दिनों की सुर्खियों भयंकर खूनखराबे की होतीं। जियाउद्दीन बरनी से बेहतर कोई क्राइम रिपोर्टर हो नहीं सकता था। उसकी यह रिपोर्ट पहले पन्ने पर छपती-


         “नव-मुसलमानों की बगावत की जानकारी मिलते ही अलाउद्दीन खिलजी ने आदेश दिया कि सब तरह के विद्रोहियों की औरतों और बच्चों को कैद कर लिया जाए। यह पहला मौका है जब पुरुषों के अपराध में उनके घरों की औरतों और बच्चों को बंदी बनाया गया है। दिल्ली में इसके पहले ऐसा कभी नहीं हुआ।


         नुसरत खां ने अपने भाई के कत्ल का बदला दिल्ली में उन बागियों के घरवालों से लेना शुरू कर दिया है। उनके बच्चों के बारे में आदेश हुआ है कि उन्हें उनकी माताओं के सामने ही मार डाला जाए। ऐसा जुल्म किसी भी मजहब में नहीं हुआ होगा। नुसरत खां जो भी कर रहा है, उसे देख-देखकर दिल्ली के लोग स्तब्ध थे। उनके दिल काँप उठे हैं।”


         हम एक बार अमीर खुसरो के पास भी चलते हैं, जिसके पास कुछ और भी जानकारियां हैं। वह बहुत बारीक ब्यौरे दर्ज करता है। उसने गुजरात पर हमले की तारीख दर्ज की है-23 फरवरी 1299। वह बता रहा है-


       “यह हमला सोमनाथ के मंदिर को तोड़ने के इरादे से किया गया था। उलुग खां को सेना का सरदार बनाया गया था। उसकी सेना ने गुजरात में भीषण रक्तपात के बाद फतह हासिल की। इस्लामी सेना ने हिंदुओं की पूजा के केंद्र सोमनाथ को घेर लिया। मूर्तियां खंडित कर दी गईं और सबसे बड़ी मूर्ति को दिल्ली भेज दिया गया। नहरवाला, खंभात और समुद्र तट के दूसरे शहरों पर भी फतह हासिल की गई।”


         अब प्रश्न है कि इस हमले में अपनी जान बचाकर देवगिरि भागने वाले गुजरात के राजा कर्ण की रानियों और उनकी बेटियों का क्या हुआ? अमीर खुसरो की मीठी आवाज में उनका हाल भी सुन लीजिए–


         राजा कर्ण बहुत ताकतवर था लेकिन जब उलुग खां का हमला हुआ तो वह भाग निकला। राय की रानियों, खजाने और हाथियों पर कब्ज़ा जमा लिया गया। कर्ण की रानी कमला दी बहुत ही खूबसूरत थी। खान ने दिल्ली आकर लूट की सारी धन-दौलत, हाथी-घोड़ों के साथ गुप्त रूप से कमला दी को भी अलाउद्दीन खिलजी के सामने पेश किया। अलाउद्दीन ने उसे अपनी रानी बना लिया।


          कमला दी दो बेटियों की माँ थी। जब कमला दी को दिल्ली में पेश करने के लिए लाया गया तो वे दोनों बेटियाँ राय के साथ रह गई थीं। एक की मौत हो गई थी। दूसरी छह महीने की थी, जिसका नाम देवल दी था।


          एक रात अलाउद्दीन को खुश देखकर उसने अपनी जीवित बेटी का जिक्र किया। अलाउद्दीन तब अपने बेटे खिज्र खां की शादी को लेकर साेचा करता था। रानी की बात सुनकर उसने तय कर लिया कि खिज्र खां की शादी देवल रानी से करा दी जाएगी।


          उसने फौरन यह सूचना राजा कर्ण के पास भिजवाई। राजा बहुत खुश हुआ। वह तो देवल दी को अत्यधिक धन-संपत्ति सहित दिल्ली भेजने की तैयारी ही कर रहा था। लेकिन इस बीच अलाउद्दीन ने फैसला किया कि गुजरात पर ही कब्ज़ा जमाया जाए।


         एक बार फिर उलुग खां को हमले के लिए भेजा गया। इस बार भी राजा कर्ण देवगिरि की तरफ भाग निकला। उसका पीछा किया गया। देवगिरि से एक फरसंग पहले जंग हो गई। देवल दी जिस घोड़े पर सवार होकर ले जाई जा रही थी, वह गिर पड़ा। देवल दी को बड़ी इज्जत से उलुग खां के पास भेज दिया गया। एक बड़ी फौज के साथ वह दिल्ली रवाना कर दी गई।


           पहले ही लूटकर बरबाद कर दिए गए एक पराजित राज्य पर कब्ज़े की बदनीयत से शातिर अलाउद्दीन गुजरात पर फिर से कहर बरपाता है। पहले के धावे में रानी कमला दी दिल्ली लाई जाती है। दूसरी बार में उसकी बेटी देवल दी को भी। कमला दी को उसने अपनी रानी बनाया है और बेटी की शादी खिज्र खां से कराने का इरादा रखता है।


          अब आप उन तुर्काें के नैतिक मूल्यों की कल्पना कीजिए, जिन्हें स्वतंत्र भारत में महान् सुलतान कहकर नवाजा गया। बाप ने माँ को अपना लिया है। उसकी बेटी से अपने बेटे के निकाह की सोचता है। यहाँ इंसानियत और रहम का नामोनिशान नहीं है।


         दिल्ली के चारों तरफ कत्लेआम, लूटमार और साजिश की खबरें हैं। एक हमले के बाद दूसरे हमले हैं। एक साथ अलग-अलग दिशाओं में अलग-अलग शहरों पर हमले और लूट की अनगिनत वारदातें हैं। दिल्ली इन लुटेरों का सबसे पुख्ता गढ़ बन चुकी है, जहाँ अब अलाउद्दीन खिलजी की तूती बोल रही है।


         हर तरफ नई मस्जिदों और मदरसों की बहार है। दूसरे शहरों को तबाह करके लौटती फौजें वहांँ के मंदिरों की शानदार मूर्तियों को यहाँ लाकर फेंक रही हैं ताकि वे लोगों के पैरों के नीचे रौंदी जाएँ। हिंदुस्तान की तबाही की खबरें हर तरफ से हैं। बरनी जैसे कलमनवीस भी खुश हैं कि इस्लाम का परचम पूरे जोर पर फहरा रहा है।


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