गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने वाली नव वधू से।


गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने वाली नव वधू से।


       मेरी पुत्री ! गृहस्थ योग की महिमा तुम सुन चुकी हो। गृहस्थ की की साधना द्वारा ही इस महान् भारत र उसके माध्यम से सारे संसार के स्वर्ग बनाया जा सकेगा, यह रहस्। भी तुम पर प्रकट हो चुका हैइसके लिए तुम्हारा महत्वपूर्ण योग दान अपेक्षित है | 


      तुम नारी हो- भूलोक की कविता ! तुम सजीव कल्याण हो, ममता हो, दया हो क्षमा हो, और श्रद्धा हो। तुम पत्नी हो- पति का हृदय तत्व उसकी प्राण-शक्ति ! तुम भगिनी हो- भाई की चेतना शक्ति ! तुम माता हो-पुरुष की निर्मातृ शक्ति! जो हाथ पालना झुलाता है, वही विश्व पर शासन करता है, अपने इस महिमामय स्वरुप को तुम समझो | 


      मैं मानता हूँ जिन्होंने तुम्हें पैर की जूती कहा, 'सहज अपावन नारि' कहा, 'अधम से अति अधम, अधम अतिनारी' कहकर पुकारा, ढोल और गँवार से तुलना कर ताड़ना का अधिकारी बताया, जिन्होंने गृहस्थ को रौरव नरक और नारी को 'नरक के द्वार' की संज्ञा दी, उन सबके प्रति तुम्हारे मन में आक्रोश है, क्षोभ है, बदले की भावना है।


       तुम्हारे प्रति मध्य युग के अत्याचारों का चित्रण युग कवि गुप्त जी ने कैसे मार्मिक शब्दों में किया है-


अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी|


आँचल में है दूध और आँखों में पानी॥


       मैं मानता हूँ कि यह स्थिति असह्य है। पर क्या प्रतिक्रिया स्वरुप वासना की अधिष्ठात्री बनकर तुम आज पुरुष को अपना क्रीतदास बनाना चाहती हो ? किन्तु मातः ! यह तुम्हारा सहज रुप नहीं है। तुम्हार भ्रकुटि-निमेष से प्रलय मच जायेगी। 'नारी जागरण' के नाम पर जिस छलनामय स्वरुप को तुमने अपना लिया है वह पुरुष को छलने के पहले तुम्हें ही छल रहा है। यह तुम्हारी अन्तश्चेतना का छल हैयह सर्वनाश का निमन्त्रण है। तुम क्लबों में इठलाने वाली वासना की तितली नहीं मातृशक्ति हो-निर्माण की अधिष्ठात्री देवी ! वैदिक स्वर्ग को लाने के लिये तुम्हें अपने गौरवमय स्वरुप को समझना होगा | 


       हाँ, आवश्यकता होने पर प्रधान मन्त्री बनो, या संसद सदन और राज्य सदनों का गौरव भी बढ़ाओ। मनाही नहीं है, इसके लिये। पर तुम यह मत भूलो कि तुम्हारा मुख्य कार्य क्षेत्र तुम्हारे घर का आँगन है। कर्त्तव्य-पथ से विचलित हताश और निराश पुरुष को माता-बहिन या पत्नी के रुप में प्रेरणा बनकर कर्त्तव्य-पथ पर आरुढ़ करने में तुम्हारी राष्ट्र सेवा का सर्वोत्तम स्वरुप छिपा हैत्याग और उत्सर्ग की भूमि में तुम्हारे चिरजीवन का रहस्य निहित है। इतिहास के पृष्ठ बताते हैं कि कभी कौशल्या और कुन्ती बनकर तो कभी सीता, द्रोपदी और पद्मिनी बनकर और कभी हाड़ा रानी एवं पन्नाधाय बनकर तुमने राष्ट्र रक्षा और समाज सेवा का अपूर्व आदर्श प्रस्तुत किया है| 


       मेरे राम और श्याम कहीं खो नहीं गये हैं। यहीं भारत की पवित्र मिट्टी के कणों में वे कहीं छिपे हैं। ये आज भी अवतरित हो सकते हैं। तुम्हारे आँगन में वे फिर किलकारियाँ भर सकते हैं, तुम्हारी गोद को वे फिर गौरवमय कर सकते हैं, तुम्हारी कोख को वे फिर धन्य कर सकते हैं। शर्त यह है कि तुम्हें कौशल्या और देवकी बनना होगा। माता मदालसा बनने के पश्चात् यह तुम्हारे हाथ में है कि तुम अपने पुत्र को राजर्षि, बनाओ या ब्रह्मर्षि। मत भूलो-सुयोग्य सन्तति का निर्माण, राष्ट्र को सुयोग्य नागरिक देना सर्वोत्तम राष्ट्र सेवा है। और हाँ यही सच्ची प्रभु भक्ति भी है। याद रखो तुम्हारे घर का आँगन किसी भी बड़े पद या कुर्सी से इतना ही नहीं तो किसी भी बड़े देवालय से भी अधिक महत्वशाली है, पवित्र है | 


      आज मेरे देश के युवक और युवतियाँ अति भौतिकता की जड़ता के शिकार बनकर पश्चिम की अन्धी नकल करने में लगे । डार्विन के विकासवाद, तथा मार्क्स के साम्यवाद और समाजवाद के लुभावने नारों के माया जाल में फंसे जीवन के सत्य से वे दर चले जा रहे हैं। प्रगति के नाम पर इन्द्रियों की गुलामी को सर्वनाशी राह को उन्होंने चुना है। गृहस्थ जीवन को या तो वे वासना-विलास की क्रीड़ा स्थली समझ रहे हैं या फिर उससे दूर रहकर पशुओं की तरह का उच्छृखल और निरंकुश जीवन बिताने में सुख की अनुभूति मान रहे हैं। परिवार नियोजन की महाभ्रष्ट योजना ने उनकी इस पशता को और भी बल एवं समर्थन दिया है ऐसे इस युग में आदर्श गृहस्थ या वैदिक स्वर्ग की गौरवमय मर्यादा और स्वरुप को हृदयगंम करने की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है। वैदिक स्वर्ग का उपरिनिर्दिष्ट यह उदात्त स्वरूप अधिक गहराई से हृदयगत हो सके इस विचार से 'पारिवारिक चर्या, तथा व्यवहार के आलोक में' शीर्षकों के अन्तर्गत हम अपने अमर इतिहास ग्रन्थ-रामायण और महाभारत आदि से कुछ सचित्र उदाहरण, कुछ संवाद और पारिवारिक कहानियाँ, कुछ सुभाषित और सूक्तियाँ तथा कुछेक गीतों का संग्रह यहाँ दे रहे हैं।


      _आज हमारे गार्हस्थ्य जीवन की समस्यायें तो विविध प्रकार की हैं। फिर भी हमारा विश्वास है कि 'वैदिक स्वर्ग' की ये झाँकियाँ हमारे परिवारों को अधिक सुखी और वातावरण को अधिक स्वर्गिक एवं शान्तिमय बनाने में सहायक सिद्ध होगी| 


- प्रेमभिक्षु


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