घर ही तीर्थ (गीत)
घर ही तीर्थ (गीत)
कैसा बदल गया है दुनिया का कारखाना।
हर चीज में नुमायश हर चीज में दिखावा।।
प्रजा नुमायशी है, सेवा दिखावटी है।
ईश्वर के साथ छल है, इस छल का क्या ठिकाना।।
घर में हो घुप अंधेरा, मन्दिर में रोशनी हो।
ऐ मेरे प्यारे मित्रो ऐसा गजब न ढाना।।
घर का दिया जलाकर, मन्दिर में तुम जलाना।।
घर ही है सच्चा मन्दिर, है इसमें लक्ष्मी भी।
आओ तुम्हें बता, पत्नी है वह तुम्हारी।
इज्जत से उसको रखना, प्रसन्न उसको करना।
इस घर की लक्ष्मी की, पूजा बहुत है अच्छी।।
बूढी तुम्हारी माता, सब देवियों की देवी।
बस सत्य ही समझना, है स्वर्ग की नसैनी।।
बाहर से आओ घर में, तो पैर उसके पूजो।
जब जाओ घर से बाहर, तो लो दुआएँ उसकी।।
लड़के हैं जितने घर में, वे सब बिहारीजी हैं।
सब हैंअवध बिहारी, मूरत वे कृष्ण की हैं।।
मेले इन्हें दिखाओ जलसों में साथ लाओ।
यह ब्रज से और अवध से, आवाजें आ रही हैं।।
घर है तुम्हारा मन्दिर, सब तीर्थों से बढ़कर।
दुनियाँ का कोई तीरथ, इसके नहीं बरावर।
प्रयाग और काशी गंगा, हो या कि जमना।
सब हैं इसी के अन्दर, कोई नहीं है बाहर।।
मेरी सुनो अजीजो कहता हूँ बात सच्ची।
गर यात्रा है करनी कीजे यहीं से उठकर।।
घर में दिया जलाकर मन्दिर में फिर जलाना॥५