गीता में आर्य शब्द का उल्लेख 


गीता में आर्य शब्द का उल्लेख 


        भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने जब देखा कि वीर अर्जुन अपने क्षात्रधर्म के आदर्श से च्युत होकर मोह में फंस रहा है तो उसको सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा-


कुतस्त्वा कश्मलमिदं, विषमें समुपस्थितम्।


अनार्यजुष्टमस्वय॑म्, अकीर्तिकरमर्जुन॥


           अर्थात् हे अर्जुन! यह अनार्यों व दुर्जनों द्वारा सेवित, नरक में ले-जानेवाला, अपयश करानेवाला पाप इस युद्ध-समय में तुझे कैसे प्राप्त हो गया?


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