गौरवमय प्राचीन भारत


गौरवमय प्राचीन भारत


(महर्षि दयानन्द के शब्दों में)


      सत्यार्थ प्रकाश से-


      यह आर्यावर्त्त देश ऐसा है जिसके सदृशा भूगोल में दूसरा कोई देश नहीं हैइसलिए इस भूमि का नाम सुवर्ण भूमि है क्योंकि यही सुवर्ण आदि रत्नों को उत्पन्न करती है। इसलिए सृष्टि के आदि में आर्य लोग इसी देश में आकर बसे। पारसमणि पत्थर सुना जाता है और यह बात तो झूठी है परन्तु आयांवत देश ही सच्चा पारसमणि है कि जिसको लोहेरूप दरिद्र विदेशी कृते के साथ ही मचा यात धनाढ्य हो जाते है।


       जितनी विद्या भूगोल में फैली है वह सब आर्यावर्त देश से मिश्र वालों, उनसे यूनान, उनसे रूम (रोम) और उनसे यूरोप देशों में. उनमे अमेरिका आदि देशों में फैली है।


      देखो काशी के. मानमन्दिर' शिशुमारचक्र को कि जिसकी पूरी रक्षा भी नहीं रही है तो भी कितना उत्तम है कि जिससे अब तक भी खगोल का बहुत सा वृत्तान्त विदित होता है।


      भोजप्रबन्ध में लिखा है-राजा भोज के राज्य में और समीप ऐसे शिल्पी लोग थे कि जिन्होंने घोड़े के आकार का एक यान यंत्रकलायुक्त बनाया था जो एक घण्टे में साढ़े सत्ताईस कोश (लगभग सत्तर किलोमीटर) जाता था। वह भूमि और अन्तरिक्ष भी चलता था और दूसरा पंखा ऐसा बनाया था कि बिना मनुष्य के चलाए कलायन्त्र केबल से नित्य चला करता और पुष्कल (बहत) वायु देता था(राजा भाज अब से लगभग पन्द्रह सौ वर्ष पूर्व हुए थे।)


      सृष्टि के आरम्भ से लेकर पांच हजार वर्ष पूर्व पर्यन्त आर्यों का सार्वभौम चक्रवर्ती अर्थात् भूगोल में सर्वोपरि एकमात्र राज्य था। अन्य देशों में माण्डलिक अर्थात् छोटे छोटे राजा रहते थे ।


      श्री कृष्ण तथा अर्जुन अश्वतरी अर्थात् जिसको अग्नियान नौका कहत है उस पर बैठ के पाताल (अमेरिका) में जाके महाराजा युधिष्ठिर के यज्ञ में उद्दालक ऋषि को ले आए थे।


      धृतराष्ट्र का विवाह 'गंधार' जिसको कन्धार कहते हैं वहां की राजपुत्री से हुआ। माद्री पाण्डु की स्त्री 'ईरान' के राजा की कन्या थी। और अर्जुन का विवाह पाताल में जिसको अमेरिका कहते हैं वहां के राजा की लड़की उलोपी से हुआ था ।


      पहले जो लोग लड़ाईयां करते थे उन्हें विमान रखने के लिए विद्या भली प्रकार विदित थी। मैंने भी एक विमान रचना की पुस्तक देखी है। (महर्षि दयानन्द ने अपनी पुस्तक 'ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका' में विमान बनाने की विधि लिखी है।)


      पूना पवचन से-एक अंग्रेजी विद्वान् डाक्टर हम को मिला। उसने मुझसे कहा कि हमारे प्राचीन आर्य लोगों में डाक्टरी औजार का कुछ भी प्रचार न था और उन्हें विदित न था। तब मैंने सुश्रुत का 'नेत्र अध्याय' जिसमें कि बारीक से बारीक औजार का वर्णन है निकालकर उसे दिखाया। तब उसको ज्ञान हुआ कि आर्य लोग चिकित्सा में बड़े चतुर थे और उन्हें औजारों की विद्या भी उत्तम ज्ञात थी।


      परन्तु ऐसे शिरोमणि देश को महाभारत के युद्ध ने ऐसा धक्का दिया कि अब तक भी अपनी पूर्व दशा में नहीं आयाक्योंकि जब भाई को भाई मारने लगे तो नाश होने में क्या सन्देह ?


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