गायत्री-मन्त्र का अर्थ एवं भावार्थ का गान


गायत्री-मन्त्र का अर्थ एवं भावार्थ का गान


ओ३म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।


                                        धियो यो नः प्रचोदयात्॥                                        -यजुः०   


     हे प्राण, पवित्रता और आनन्द को देनेवाले प्रभो! आप सर्वज्ञ और सकल जगत् के उत्पादक हैं, हम आपके उस पूजनीय, पापविनाशक, विज्ञानस्वरूप तेज का ध्यान करते हैं जो हमारी बुद्धियों को प्रकाशित करता है। हे पिता! आपसे हमारी बुद्धि कदापि विमुख न हो। आप हमारी बुद्धियों में सदैव प्रकाशित रहें और हमारी बुद्धियों को सत्कर्मों में प्रेरित करते रहें ।


तूने हमें उत्पन्न किया पालन कर रहा है तू।


तुझ से ही पाते प्राण हम दुखियों के कष्ट हरता है तू॥


तेरा महान् तेज है छाया हुआ सभी स्थान


सृष्टि की वस्तु वस्तु में तू हो रहा है विद्यमान॥


 तेरा ही धरते ध्यान हम मांगते तेरी दया।


                                    ईश्वर हमारी बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर चला॥                                         


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