गाय, भैंस आदि पशु-वध राष्ट्र घातक है


गाय, भैंस आदि पशु-वध राष्ट्र घातक है


      गाय, भैंस, बकरी आदि पशुओं से हमें दूध, बैल, खाद, चमड़ा आदि जीवनोपयोगी अनेक पदार्थ प्राप्त होते हैं। और इन पदार्थों की हमारे देश में बेहद कमी है।


      दूध-गाय, भैंस, बकरी आदि का दूध शरीर को पुष्ट करता है। गाय का दूध बुद्धि को भी बढ़ाता है तथा बहुत से रोगों का भी नाश करता है।


       भारतवर्ष में प्रति गाय औसतन वार्षिक दूध उत्पादन तीन सौ दस (३१०) लिटर है, जबकि इंगलैंड, डेनमाक्र, ईजरायल, अमेरिका आदि देशों में यह मात्रा चार हजार पांच सौ (४५००) लिटर है। दूध तथा दूध से बने पदार्थों की दैनिक प्रति व्यक्ति औसतन खपत भारतवर्ष में (दूध की मात्रा में) एक सौ (१००) मिलिलिटर है। पश्चिमी विकसित देशों में यह मात्रा चार लिटर है यानि हमारे से चालीस गुणा अधिक।


        हम विदेशों से सूखा दूध तथा घी मंगवा रहे हैं। फिर भी देश की आधी जनता को दूध, घी, दही देखने को भी नहीं मिलताअगर देश में दूध का उत्पादन अधिक .. हो जाए तो अनाज भी कम लगे। अनाज कम खाने से मल भी कम बनता है तथा दुर्गन्ध भी कम पैदा होता है। इसलिए रोग भी कम होते हैं। 


       बैल-भारतवर्ष में खेती के लिए ट्रैक्टरों के साथ-साथ बैलों की भी बहुत आवश्यकता है क्योंकि यहां पर बड़े फार्म कम और छोटे-छोटे खेत अधिक हैं। हमारे देश में अब भी सत्तर प्रतिशत (७० प्रतिशत) खेती बैलों से ही होती है। बैलों का उपयोग गाड़ी में जोतकर अनाज, चारा आदि ढोने में भी होता है।


        ट्रैक्टरों के लिए डीजल आदि ईंधन के लिए विदेशों का मुंह ताकना पड़ता है तथा उन्हें मुंह मांगे दाम भी देने पड़ते हैं। केन्द्रीय कृषि यांत्रिक अनुसंधान संस्थान नवीबाग भोपाल ने बैल चालित एक मिनी ट्रैक्टर बनाया है जो वर्तमान हल से दो तीन गुणी जुताई करता है तथा किसान उस पर बैठकर काम कर सकता है।


        खाद-पशुओं का गोबर तथा मूत्र खेती के लिए सर्वोत्तम खाद है। ये भूमि को उपजाऊ बनाते हैं। जबकि रासायनिक खाद भूमि को उपजाऊ बनाने वाले जीवांश नहीं देती।


        रासायनिक खाद से उत्पन्न अनाज के खाने से कई प्रकार के रोग लगते हैं। न्यजीलैण्ड में एक परीक्षण किया गया था जिसका विवरण २६ फरवरी, १६४६ के "दैनिक हिन्दुस्तान" में "स्वतन्त्रता रक्षक गौ' शीर्षक से छपा था। न्यूजीलैंड में एक एक सौ एकड़ जमीन के दो खेतों में से एक में गोबर, गोमूत्र आदि खाद और दसरे में रासायनिक खाद डालकर गेहूं की खेती की गई। उससे जो अन्न तथा भूसा प्राप्त हुआ वह एक एक सौ पुरुष-स्त्री तथा पुरुषों को खिलाया गया। रासायनिक खाद से तैयार हुए अन्न तथा भूसे से मनुष्यों तथा पशुओं को अनेक रोग हुए-विशेषकर मनुष्यों को गले और चमड़ी के रोग तथा पशुओं को खुरों के रोग हुए। परन्तु गोबर, गोमूत्र से उत्पन्न अन्न और भूसे से मनुष्य और पशु निरोग रहे ।


       गोबर तथा गोमूत्र की खाद की देश में बेहद कमी है। आवश्यकता का केवल अढ़ाई प्रतिशत (२.५ प्रतिशत) ही उपलब्ध है।


        चमड़ा-कंकरों, कांटों तथा गर्मी-सर्दी से पांवों को बचाने के लिए चमड़े का जूता सर्वोत्तम है। परन्तु देश में चमडे की बेहद कमी है। इसके बावजूद चमड़ा विदेशों का मजा जाता है। सरकार का पूरा जोर लगा हुआ है कि अधिक से अधिक चमड़ा नियात हा। फारन ट्रेड बुलेटिन के जुलाई १६६४ अंक के पृष्ठ सात पर 'लैदर इण्डस्ट्रीज पोजड फॉर ऐक्सपोर्ट ग्रोथ' लेख में लिखा है कि १६७१-७२ में भारत से विदेशों को एक सौ करोड़ रुपये का चमडा निर्यात किया गया था। १६६२-६३ में यह बढ़कर तीन हजार सात सौ करोड रुपये अर्थात सैंतीस गेणा हो गया है। चमडे का निर्यात भी गोहत्या में बड़ा कारण है। जिस वस्तु की देश में भारी कमी हो उस वस्तु का निर्यात जनता के साथ अन्याय तथा देश के साथ गद्दारी हैइतनी अधिक कि देश की आधी जनता चमड़े का जूता खरीदने में समर्थ नहीं है।


        मांस निर्यात-भारत केवल चमड़ा ही निर्यात नहीं करता अपितु मांस भी बड़े पैमाने पर निर्यात कर रहा है और वह भी हलाल पद्धति से तैयार किया हुआ। खाड़ी देशों में साधारण मांस का मूल्य १०० से १२५ रुपये किलोग्राम है, जबकि हलाल पद्धति से तैयार किए गए भारतीय मांस का मूल्य २०० से २५० रुपये किलोग्राम है। पशु की हत्या एक झटके से करने से उसका मांस झटके का मांस कहलाता है। उसके ऊपर एक सफेद परत रहती है किन्तु यदि पशु के गले पर धीरे-धीरे छुरी चलाकर उसे तड़पा कर मारा जाता है तो उसका हीमोग्लोबिन उसके मांस में आ जाता है जिससे मांस का रंग लाल हो जाता है। पशु को मारने की इस क्रूर पद्धति का नाम 'हलाल' है।


         बैल तथा भैंसे से निर्धारित से अधिक वजन दुआना पशुओं के प्रति कूरता निवारण अधिनियम के अन्तर्गत अपराध है किन्तु क्रूरतापूर्वक उसकी हत्या करने में भारत सरकार को कोई अपराध दिखाई नहीं देता।


        भारत के स्वतन्त्र होने के समय देश में तीन सौ कत्लखाने थे और अब छत्तीस हजार से अधिक हैं ।


        यदि पशु वध बन्द कर दिया जाए तथा गाय, भैंस की नसल सुधारी जाए तो देश में दूध, घी, बैल, खाद और चमड़ा की कमी दूर हो सकती है। पशु पालन बड़े अच्छे गृह उद्योग के रूप में अपनाया जा सकता है जिससे बेरोजगारी दूर होने में भी सहायता मिलेगी।


        आखिर गाय, भैंस आदि पशु खाते क्या हैं-गेहूँ और चने निकालने के बाद बची तडी, सरसों ओर बिनौलों का तेल निकालने के बाद बची खल, मकई के टांडे, हरी घास, खाद के लिए उगाई गई बरसीम, सब्जी के छिलके आदि-सबके सब ऐसे पदार्थ जो मनुष्य के लिए किसी काम के नहीं।


        लोकमान्य तिलक ने कहा था-"स्वतन्त्रता प्राप्ति के बादं पांच मिनट में कलम की नोक से कानून के द्वारा गोहत्या बन्द कर दी जाएगी।" हमारे संविधान के अनुच्छेद ४८ में भी गोहत्या बन्दी सम्बन्धी व्यवस्था है। परन्तु स्वतन्त्रता के त्रेपन वर्ष बीत जाने पर भी इस दिशा में कोई पग नहीं उठाया गया है।


        स्वतन्त्रता के पूर्व महात्मा गांधी ने कहा था-"जहां गोहत्या होती है मुझे लगता है मेरी स्वयं की हत्या हो रही है।" परन्तु स्वतन्त्रता के बाद वही महात्मा कहने लगे-"अपने धर्म के आचार विचार को कानून के जरिए दूसरे धर्म के लोगों पर लादना बिल्कुल गलत चीज है।" जिस बात से सारे राष्ट्र को आर्थिक, बौद्धिक, मानसिक और आत्मिक लाभ पहुँचता हो उस बात को मजहब से जोड़कर नकारा गया।


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।