ईश-प्रार्थन

ईश-प्रार्थन


मुझे वे धर्म से हे पिता,


सदा इस तरह का प्यार दे ।


कि न मोडू मुंह कभी उससे मैं, 


कोई चाहे सिर भी उतार दे||


वह कलेजा राम को जो दिया,


वह जिगर जो बुद्ध को अता किया।


वह फराख दिल दयानन्द का,


घड़ी भर मुझे भी उधार दे ।।


न दुश्मनों से मुझे गिला,


करूं मैं बदी की जगह भला ।


मेरे दिल से निकले सदा दुआ,


कोई चाहे कष्ट हजार दे ॥


न हो मुझको ख्वाहिशे मर्तबा,


न हो मालो जर की हविस मुझे।


मेरी उम्र खिदमते खल्क में,


परमात्मा ! तू गुजार दे ॥


मुझे प्राणिमात्र के वास्ते,


करो सोजे दिल वह अता पिता।


जलूँ उनके गम में मैं इस तरह,


कि न खाक तक भी गुबार दे ॥


मेरी ऐसी जिन्दगी हो बसर, 


कि रहूं सुर्खरु तेरे सामने ।


न कहीं मुझे मेरा आत्मा ही,


यह शर्म लैलो निहार दे॥


न किसी का मर्तबा देखकर, 


जले दिल में नारे हसद कभी ।


जहां पर रहूं, रहूं मस्त मैं,


मुझे ऐसा सब्रो करार दे ॥


लगे जख्म दिल पै अगर किसी के, 


तो मेरे दिल में तड़प उठे ।


मुझे ऐसा दे दिले दर्दरस, 


मुझे ऐसा सीना फिगार दे ||


है 'प्रेम' की यही कामना,


यही एक उसकी है आरजू ।


कि वह चन्दरोजा हयात को,


तेरी याद में ही गुजार दे।


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