ईमानदार बालक


            एक निर्धन बालक किसी के घर में सफाई का काम कर रहा था। कमरे में पड़ी एक सुन्दर घड़ी देखकर उसके मन में पाप जाग उठा। उसने घड़ी उठाई। परन्तु अगले ही क्षण उसे अन्दर से आवाज सुनाई दी-अरे! चोरी करना पाप है। पकड़े जाने पर कैद किया जाएगा। न पकड़ा गया, तब भी प्रभु की ओर से सजा अवश्य मिलेगी। ऐसी चेतावनी से वह भयभीत हो गया। उसका शरीर पसीना-पसीना हो गया और वह कांपने लगा। उसने सोचा कि चोरी का विचार आने का यह फल है कि मुझे इतना दु:ख हो रहा है। कहीं मैं चोरी कर लेता तब तो पता नहीं, मुझे कितना भयानक कष्ट उठाना और दुःख झेलना पड़ता। इतना कहकर लड़का शान्तचित्त से अपने काम में लग गया ।


            घर की मालकिन बगल के कमरे से सब कुछ देख सुन रही थी। वह अब तुरन्त लडके के पास आ गयी और पूछने लगी-लडके तने घडी ली क्यों नहीं? लडका इतना सनते ही सन्न हो गया। काटो तो खन नहीं। वह सिर थामकर दीनभाव से जमीन पर बैठ गया और कांपने लगा। उसकी जबान बन्द हो गयी और आंखो से आंसुओं की धारा बह चली। लडके की दीन दशा देखकर मालकिन को दया आ गयी। उसने बड़े मीठे स्वरों में कहा-बेटा! घबरा मत, मैंने तेरी सभी बातें सुनी हैं।' तू गरीब होकर भी इतना भला, ईमानदार और धर्म तथा ईश्वर से डरने वाला है, यह देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। तेरी मां धन्य है, जो उसने तुझे ऐसी अच्छी सीख दी। तुझ पर ईश्वर की बड़ी ही कृपा है, जो उसने तुझको लालच में न फंसने की ताकत दी। बेटा! सचेत रहना, कभी जी को लालच में न फंसने देना। मैं तेरे खाने-पीने का और किताबों का प्रबन्ध कर देती हूँ। तू कल से पाठशाला में जाकर पढ़ना शुरु कर दे। ऐसा कहकर उसने बालक को हृदय से लगा लिया। दूसरे ही दिन से वह लड़का पाठशाला में पढ़ने लगा। उसने बड़ा परिश्रम किया, तप किया। आगे चलकर वह एक विद्वान और प्रतिष्ठित पुरुष बना। शिक्षा-सत्यव्रती बनो, परिश्रमी बनो, ईमानदार बनो।



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