दोष या गुण


    प्र.) जब कोई मनुष्य मन से बुरा जानता परन्तु किसी विशेष भय आदि निमित्तों से नहीं छोड़ सकता और अच्छे काम को नहीं कर सकता तब भी क्या उसको दोष वा गुण होता है अथवा नहीं? 


      उ.) दोष ही होता क्योंकि जो उसने अधर्म कर लिया उसका फल अवश्य होगा और जानकर भी धर्म को न किया उसको सुखरूप फल कुछ भी नहीं होगा। और जैसे कोई मनुष्य कुए में गिरना बुरा जानके भी गिरे, क्या उसको दुःख न होगा और अच्छे मार्ग में चलना जानकर भी न चले, उसको सुख कभी न होगा। इसलिये-


यथा मतिस्तथोक्तिर्यथोक्तिस्तथा मतिः।


सत्पुरुषस्य लक्षणमतो विपरीतमसत्पुरुषस्येति।।1।


         वही सत्पुरुष का लक्षण है कि जैसे आत्मा का ज्ञान वैसा वचन जैसा वचन वैसा ही कर्म करना। और जिसका आत्मा से मन, उसले और वचन से विरुद्ध कर्म करना है, वही असत्पुरुष का लक्षण है। इसलिये मनुष्यों को उचित है कि सब प्रकार का पुरुषार्थ करके अवश्य धार्मिक हों।।


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