दूसरी कल्पना
दूसरा विचार यह है कि समय-समय पर विशेष-विशेष पुरुषों के रूप में ईश्वरीय ज्ञान प्रादुर्भूत हुआ करता है। ईसाई, मुसलमान, यहूदी आदि सम्प्रदाय इस विचार के समर्थक हैं। इस कल्पना में यह आवश्यक है कि दूसरे इलहाम होने पर पहला रद्द समझा जावे, जैसा कि सैमेटिक लोगों का विचार है। परन्तु यह बात यहाँ याद रखनी चाहिये कि ईश्वर और उसके ज्ञान आदि सभी नित्य और अपरिवर्तनीय हैं। फिर ईश्वर प्रदत्त इलहाम का मन्सूख होना कैसा ?
प्लेटो ने ठीक ही कहा है कि 'परमात्मा ज्ञान और कर्म दोनों में पूर्ण सरल और सत्य है। वह परिवर्तन नहीं करता, वह कभी किसी प्रकार से भी जागृत या स्वप्न में आदेश या शब्द में धोखा नहीं देता।'
ये विचार उसने अपने ग्रन्थों में अनेक जगह प्रकट किये हैं।'
-महात्मा नारायण स्वामी