धुनिया को उपदेश

       धुनिया को उपदेश  (महर्षि दयानन्द सरस्वती) 


          एक धूनिया भी श्रद्धा और प्रेम से स्वामीजी के उपदेश सुनने प्राया करता था । उसने एक दिन अत्यन्त ननभाव से निवेदन किया-"महाराज! कोई विधि भी है, जिससे मुझ जैसे अज्ञानी जीव का भी कल्याण हो जाये।" स्वामोडी ने परमदयालुता से उसे 'प्रो३म्' का जप करने का आदेश दिया और कहा कि व्यवहार में सच्चे रहो, जितनी रुई कोई तुम्हें धुनने को दे उसे उतनी ही रुई धुन कर लौटा दो, इसीसे तुम्हारा कल्याण हो जायेगा।


           एक उमेदा नाई अनूपशहर में रहता था। उसके भी हृदय-मन्दिर में स्वामीजी का महत्त्व बस गया। एक दिन वह भक्ति-भावना से थाल में भोजन परसकर स्वामीजी की सेवा में लाया। स्वामीजी ने भक्त के भोजन को लेकर भोग लगाना आरम्भ कर दिया। उस समय, वहाँ कोई बीस-पच्चीस ब्राह्मण विद्यमान थे | वे कह उठ"छः छिः छिः ! स्वामीजी क्या करते हो? यह रोटी तो नाई की है। महाराज ने हंसते हुए कहा-- "नहीं, यह रोटी तोगेहं की हैगेहूं की है, इसलिए म इसलिए मैं इसे अवश्य खाऊंगा | 


                                       महर्षि दयानन्द सरस्वती जीवन चरित्र 


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।