धर्म और अधर्म किसको कहते हैं

                 


प्र.) धर्म और अधर्म किसको कहते हैं?


उ.) जो न्यायाचरण सबके हित का करना आदि कर्म हैं उनको धर्म और जो अन्यायाचरण सबके अहित के काम करने हैं उनको अधर्म जानो।।


महामूर्ख का लक्षण


एक प्रियदास का चेला भगवानदास अपने गुरु से बारह वर्ष पर्यन्त पढ़ा। एक दिन उसने पूछा कि महाराज! मुझको संस्कृत बोलना नहीं आया! गुरु बोले-सुन बे! पढ़ने-पढ़ाने से विद्या नहीं आती। किन्तु गुरु की कृपा से आ जाती है। जब गुरु सेवा से प्रसन्न होता है तब जैसे कुंजियों से ताला खोलकर मकान के सब पदार्थ झट देखने में आते हैं वे ऐसी युक्ति बतला देते हैं कि हृदय के कपाट खुल कर सब पदार्थविद्या तत्क्षण आ जाती है। सुन! संस्कृत बोलने की तो सहज युक्ति है। (भगवानदास) महाराज जी! वह क्या है? (गुरु) संसार में जितने शब्द संस्कृत वा देशभाषा में हों, उन पर एक-एक बिन्दु धरने से सब शुद्ध संस्कृत हो जाते हैं। अच्छा तो महाराज जी लोटा, जल, रोटी, दाल, शाक आदि शब्दों पर बिन्दु धर के कैसे संस्कृत हो जाते हैं। देखो लोटां। जंलं। रोंटीं। दांलं। शांकं। चेला बोला वाह-वाह गुरु के बिना क्षणमात्र में पूरी विद्या कौन बतला सकता है? भगवानदास ने अपने आसन पर जाकर विचार के यह श्लोक बनाया-


बांपं आंजां नमस्कृत्यं परं पांजं तथैवं चं।


मंयां भगवानं दांसेनं गीतां टीकां करोंम्यहम्।।


      जब उसने प्रातः काल उठकर हर्षित होके गुरु के पास जाकर श्लोक सुनाया, तब तो प्रियदास जी भी बहुत प्रसन्न हुए कि जो चेले हों तो तेरे ही समान गुरु के वचन पर विश्वासी और गुरु हो तो मेरे सदृश हो। ऐसे मनुष्यों . का क्या औषध है? विना अलग रहने के।


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