धनिक प्रभु के मित्र नहीं बनते

धनिक प्रभु के मित्र नहीं बनते


नकी रेवन्तं सख्याय विन्दसे पीयन्ति ते सराश्वः।


यदा कणोषि नद्नु समूहस्यादित् पितेव हूयसे॥


ऋषिः- सोभरि: काण्वः॥ देवता-इन्द्रः॥ छन्दः-समा सतोबहती॥


विनय-हे इन्द्र! साधारणत व्योंकि वे हिंसक होते है। किसी कर्तव्याकर्त्तव्य जगत् में विरले ही हो। क्या हम नहीं देख है इन्द्र! साधारणतया संसार के धनिक पुरुष तेरे सख्य के योग्य नहीं होतेक होते हैंधन में ऐसा मद (नशा) होता है कि उससे मदोन्मत्त हुआ पुरुष कर्तव्य को नहीं देखताधन का संग्रह बिना हिंसा के होता ही कहाँ है? विरले ही धन-समृद्ध पुरुष होंगे जिन्होंने दूसरों को बिना सताये धन प्राप्त किया दम नहीं देखते कि ऐश्वर्य की मदिरा से मस्त हुए, धनशक्ति को सर्वोपरि समझते जन संसार के धनाढ्य लोग निःशंक होकर गरीबों को सता रहे हैं, करुणापात्रों पर ही किन्तु सम्मानपात्रों पर भी बेखटके अत्याचार कर रहे हैं? तो हम हिंसक पुरुषों को तेरे दर्शन कैसे प्राप्त हो सकते हैं ? इसलिए धनसमृद्धों में से तुझे अपने सख्य के लिए लोग नहीं मिलते हैं। वे तेरे नज़दीकी नहीं हो पाते हैं। जो तेरे सखा होते हैं, बल्कि तेरे पुत्र बनते हैं, वे दूसरे प्रकार के ही लोग होते हैं। जो धनत्याग करनेवाले तपस्वी, मदरहित शान्त पुरुष और प्रेम करनेवाले अहिंसक होते हैं, वे ही तुझे पहचान सकते हैं और पहचानते हैं; वे जब तेरी महिमा का अनुभव कर तेरे स्तोता, भक्त बन जाते हैं और विशेषतः जब तू उन्हें सम्यक्तया वहन करता है, उनका पालन-पोषण करनेवाला तू है ऐसा वे देखने लगते हे, तभी वे तुझे 'पिता-पिता' कहके पुकारने लगते हैं। वे तेरे प्यारे पुत्र बन जाते हैं। इसलिए ९३न्द्र ! धनों द्वारा हम तुझे नहीं पा सकते। तुझे पाने के लिए तो हमें धन का, कम-से- धन के मोह का त्याग करना पड़ेगा, क्योंकि तभी हम उस 'नदनु' अवस्था को पा हा पहुंचकर भक्त लोग तुझे 'पिता-पिता' कहकर पुकारने लगते हैं और तेरे वात्सल्य पलनेवाले तेरे प्यारे पुत्र बन जाते हैं।


शब्दार्थ- हे इन्द्र!    रेवन्तम्-धनवाले पुरुष को      नकिः-तू कभी नहीं       सख्याय-सख्य खाभाव के लिए      विन्दसे= पाता है, क्योंकि    ते =वे      सुराश्वः ऐश्वर्य-समृद्ध, धनमत्त सन करते हैं।        यदा-जब तू किसी को     नदनुम् =स्तोता, भक्त     कृणोष= बनाता   


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।