धन पर मत ललचा


धन पर मत ललचा


             राम और श्याम प्रात: घूमने के लिए निकले । सुनसान सड़क पर एक थेली पड़ी थी। राम ने उठा ली । खोल- कर देखा । उसमें ठसाठस नोट भरे थे। राम का चेहरा ख शी से खिल गया।


              श्याम बोला-इनमें आधा हिस्सा मेरा है।


             राम ने अंगूठा दिखाकर कहा-तुम्हारा कैसे ? मेंने ही इसे देखा । मैंने ही उठाया। तुम उठाते तो तुम लेते । मैंने उठाया तो मैं लूगा ।


             तू-तू, मैं-मैं करते बात बढ़ गई। हाथापाई हो जाती पर एक सज्जन उधर प्रा निकले । भांप गये कि बात क्या है ? कड़ककर बोले-'ठहरो। थैली किसी की नहीं है। इसे पुलिस को सौंप दो । जिसकी होगी वह आकर ले लेगा। ठहरो, मुझे दो । जिसकी थैली होगी वह इधर से ही निकला होगा। खोजकर उसी को दे देना चाहिए।'


            सज्जन ने थैली ले ली और तेज़ चलकर आगे बैलगाड़ी में जाते हुए एक ग्रामीण को जा पकड़ा। सोचा, थैली इसी की होगी। बोला-'नमस्ते ! किधर से आ रहे हो भैया ?'


           ग्रामीण ने दर्द भरे स्वर से कहा-'राम राम, भाई साहब ! गांव से चला था शहर से सामान लाने के लिए । लड़की का विवाह है। पर क्या बताऊ ? ग़रीबी में प्राटा गीला हो गया। जेब में से नोटों की थैली कहीं गिर पड़ी।'


           सज्जन ने ग्रामीण को ढाढस बंधाया। थैली के बारे में पूरी तसल्ली करके, उसे संभला दी। ग्रामीण ने नोट गिन लिए । पूरे थे। बोला-'भगवान् ने लाज रख ली । वरना लड़की के हाथ कैसे पीले होते ? आप आदमी नहीं देवता हैं ।'


          सज्जन ने देखा कि ग्रामीण परेशान होरहा था; अब धन पाकर उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। अपनी मौज में वह जेब से बीड़ी निकालकर जलाने लगा। सज्जन ने टोंका-'यह क्या कररहे हो ? ईश्वर ने तुम्हारी विपदा हर ली। अब तुम अपना मन पवित्र करने के लिए यज्ञ करो। ईश्वर को धन्यवाद दो । बीड़ी निकालते समय ही तुम्हारे नोट गिर गए होंगे । बीड़ी, शराब, आदि के व्यसन छोड़ो। भले आदमी बुराई के पास भी नहीं फटकते।'


         ग्रामीण ने उसी समय से बुराइयों से दूर रहने का व्रत ले लिया। सज्जन ने पीछे मुड़कर देखा कि राम और श्याम भी पीछे पीछे वहां आकर यह दश्य देखरहे हैं। बालक बोले-'हम भी आज से व्रत लेते हैं कि किसी के धन को देखकर ललचाएगे नहीं । अपने पसीने की कमाई पर ही हमारा अधिकार है।' 


         सज्जन बोले - बच्चो ! वेदवचन है-मा गधः कस्य स्विद्धनम् । लालच बुरी बला है। - लोभः पापस्य कारणम् । लोभ ही क्यों, सभी बुराइयां पाप की जननी होती हैं।


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