धम्मपद
धम्मपद में भी आर्य शब्द का उल्लेख
(क) अरियप्पवेदिते धम्मे सदा रमति पण्डितो।
पण्डित जन सदा आर्यों के बतलाए धर्म में रमण करता है।
(ख) न तेन अरियो होति येन पाणानि हिंसति।
अहिंसा सव्व पाणानं, अरियोति पवच्चति॥
अर्थात् प्राणियों की हिंसा करने से कोई आर्य नहीं होतासभी प्राणियों की अहिंसा से मनुष्य को आर्य-श्रेष्ठ धर्मात्मा वा सदाचारी कहा जाता है
(ग) पारसियों और जैन मतावलम्बियों में भी आर्य शब्द को श्रेष्ठ पुरुषों के लिए प्रयुक्त किया गया है। जैनों के तत्त्वार्थ सूत्र अ० ३ में 'आर्याम्लेच्छाश्च' इत्यादि सूत्र पाये जाते हैं जिनमें श्रेष्ठ पुरुषों को आर्य के नाम से स्मरण किया गया है। जैनों में साध्वियाँ अभी तक आर्या वा आरजा कहलाती है। श्री रतनचन्द जैनकृत अर्धमागधीकोष के भाग २ पृ० ८२ में आरिय वा आर्य का अर्थ पवित्र, विशुद्ध, श्रेष्ठ, पापरहित और High in Civilisation दिया है।
२४. जिन्दावस्ता में आर्य शब्द-पारसियों के मान्य धर्मग्रन्थ जिन्दअवस्ता में श्रेष्ठ पुरुषों के लिए आर्य शब्द का सैकड़ों बार प्रयोग पाया जाता है। उदाहरणार्थ-जिन्दावस्ता के भाग सिरोजह १-२५ में लिखा है कि आर्यों की प्रतिष्ठा में जिन्हें मज़्दा (परमेश्वर) ने बनाया। सिरोजह २.९ में लिखा है 'हम आर्यों के सम्मानार्थ हवन करते हैं, जिन्हें मज्दा ने बनाया है।
अस्तद यस्त का १८वाँ अध्याय आर्यों की वीरता से भरा हुआ है, उसके प्रारम्भिक श्लोक का अनुवाद इस प्रकार है। अहर मज़्दा ने स्पितामा जरदुश्त से कहा 'मैंने आर्यों को भोजन, पशुसमूह, धन, प्रतिष्ठा, ज्ञान-भण्डार और द्रव्यराशि से सम्पन्न किया है जिससे वे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें।