देवयज्ञ
देवयज्ञ
यहाँ आप आर्य शिरोमणि श्रीराम माता कौशल्या को अग्निहोत्र करते हुए देख रहे हैं। जिस समय राम वन जाने की आज्ञा प्राप्ति हेतु माता कौशल्या के भवन में पहुँचे, उस समय वे अग्निहोत्र कर रहीं थीं। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि के शब्दों में-
सा क्षौम वसना हृष्टा नित्यं व्रत परायणा।
अग्नि जुहोति स्मतदा मन्ववत् कृत मंगला॥ अयो० का०
अर्थात् वह कौशल्या रेशमी वस्त्र पहिने हुए व्रत पारायण प्रसन्न हुई उस समय में मन सहित हवन करती थीं
सच में यह कैसी स्वर्गीय झाँकी है। वह कैसा स्वर्णिम और स्वर्गीय करते थेतभी तो यहाँ के शासक उन्नतग्रीव होकर साधिकार वाणी में कह सकते थे- “नाना हिताग्निर्ना विद्वान" मेरे सम्पूर्ण जनपद राष्ट्र में एक भी गृहस्थ जन ऐसा नहीं जो अग्निहोत्र न करता हो, या अविद्वान (मूर्ख) हो।। पीछे हम श्रीराम, लक्ष्मण, सीता, श्रीकृष्ण एवं महाराज युधिष्ठिर की दिनचर्या के प्रसंग में देख ही चुके हैं कि वे सन्ध्योपासना और योगाभ्यास के साथ ही प्रात: सायं दैनिक अग्निहोत्र भी करते थे।