देश के नाम पर कलंक है भ्रष्टाचार


देश के नाम पर कलंक है भ्रष्टाचार


             भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश हैजिसे पुराने समय में सोने की चिड़िया कहते थे। आज वही सोने की चिड़िया मिट्टी की भी नहीं रहीसाम्राज्यवाद की शोषणकारी चक्की में तीन सौ वर्षों तक पिसते हुए यहाँ के जन-मानस ने स्वाधीन होने पर विशुद्ध लोकतन्त्र में अपने विकास का मधुर सपना देखा लेकिन यह इस देश का दुर्भाग्य है कि आजादी के 50 वर्ष बाद भी देश को ईमानदार नेतृत्व नहीं मिल पाया। बढ़ते अपराधीकरण और भाई-भतीजावाद की वजह से वर्तमान व्यवस्था से आम जनता का विश्वास उठता जा रहा है। भारत की राजनीतिक उथल-पुथल और घटनाक्रम से लगता है कि राजनीति और अपराध पर्यायवाची बन चुके है। आज “लोकतन्त्र की परिभाषा अपराधियों की, अपराधियों द्वारा अपराधों के लिए शासन है।" भारतीय राजनीति के इतिहास के पन्नों को अगर पलट कर देखा जाए तो प्राचीन समय में जन नायकों ने निजी स्वार्थों पर सामाजिक व राष्ट्रहित को अहमियत देते हुए उच्च नैतिक मूल्य कायम किये थे। लेकिन आज. इस विपरीत देश में जो नेता जनप्रतिनिधि व जन नायक होने का दम भरते हैं, आज वे जेल की हवा खाने को मजबूर है। लोकसभा के चुनाव भी ऐसी ही मिसाल दे गये हैं कि आज जनता का विश्वास हर राजनैतिक दल से उठता जा रहा है। आज की राजनीति जिस मोड़ पर पहुँची है। उसके लक्ष्य कुछ अच्छे प्रतीत नहीं हो रहे हैं। आज जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उनमें सबसे भयानक भ्रष्टाचार है। आज के माहौल में ऐसा लग रहा है कि आजादी के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी विरासत में मिल गया है। सभी नेता सत्ता प्राप्त करने के बाद धन इकट्ठा करने में लग जाते हैं। भ्रष्टाचार रूपी यह रोग केवल राजनीति और नौकरशाही तक ही सीमित नहीं, बल्कि हमारे पारिवारिक और सामाजिक जीवन में भी कोढ़ की शक्ल ले चुका हे। आज अधिकतर लोग भ्रष्टाचार को ही जीवन की अनिवार्यता समझने लगे हैं।


           एक समय था, जब राजनीतिज्ञ तन-मन-धन से देश की सेवा करते थे। आज राजनीति खरीदो-फरोख्त के जरिये मात्र कुर्सी हासिल करने तक ही सीमित रह गई है। मौजूदा नेताओं से सिर्फ यही सीख सकते हैं कि किस तरह संसद भवन पहुँचना है, और मंत्री पद हासिल करना है और किसी तरह देश को लूटकर खोखला करना है। ऐसे में भारत की जनता किस एक दल पर विश्वास करे। आज किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने का कारण यही है। आज का कांग्रेस जिस मोड़ पर खड़ी है, जहाँ से कोई करिश्माई ताकत ही उसे उभारने में मदद कर सकती हैकांग्रेस के विघटन और अंतर्कलह के कारण ही आज क्षेत्रीय दलों की स्थापना हुई है। देश मे बढता राजनीतिक दलों का जाल भी राजनीतिक उथल-पुथल में मददगार बन रहा है। अब आगे देखें क्या होता है।


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