दीक्षा-पद्धति की व्यापकता
दीक्षा-पद्धति की व्यापकता
वैदिक गुरुकुलीय पद्धति में दीक्षा पद इतना व्यापक है कि कुमार ब्रह्मचारी के प्रवेश से लेकर स्नातक होने तक उसका विस्तृत प्रभाव है। ऐसा लगता है कि दीक्षा पद ने अपने उदर में कुमार ब्रह्मचारी को गर्भ बना लिया हो और स्वयं गृभी बन गया हो। कुमार ब्रह्मचारी के पितृकुल से गुरुकुल में आने अथवा गुरुकुल से पुनः पितृकुल में लौटने तक दीक्षा पद का स्पष्टतया स्पर्श दृष्टिगोचर होता है। इस उक्त भावना को भगवान् पाणिनि मुनि ने दीक्ष धातु के अर्थ में समेट दिया है। उनके अर्थ में कुमार ब्रह्मचारी के मुण्डन संस्कार से लेकर दीक्षित स्नातक के मुण्डन तक का वर्णन है जो इस प्रकार हैदीक्षं मौण्ड्येज्योपनयन नियम व्रतादेशेषु। दीक्षा वह प्रक्रिया है जिसमें मुण्डन, यज्ञ, उपनयन, यम-नियम, व्रत और आदेश सम्मिलित है।