दयानन्द उवाच


दयानन्द उवाच


गृहाश्रम संस्कार


       'गृहाश्रम संस्कार' उसको कहते हैं कि जो ऐहिक और पारलौकिक सुख प्राप्ति के लिये विवाह करके अपने सामर्थ्य के अनुसार परोपकार करना और नियत काल में यथाविधि ईवरोपासना और गृहकृत्य करना और सत्य धर्म में ही अपना तन, मन, धन लगाना तथा धर्मानुसार सन्तानों की उत्पत्ति करना। (संस्कार विधि)


 


गृहस्थाश्रम महिमा


      सर्वेषामपि चैतेषाँ वेदस्मृतिविधानतः।


गृहस्थ उच्यते श्रेष्टः स त्रोनेतान् बिभर्ति हि॥


-मनु० अ०६ श्लोक ९०


      अर्थ- हे मनुष्यो ! जैसे सब बड़े-२ नद और नदी सागर में जाकर स्थिर होते हैं (उसी प्रकार) सब आश्रमी गृहस्थ ही को प्राप्त होके स्थिर होते हैं(संस्कार विधिः)


Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

वर-वधू को आशीर्वाद (गीत)