दैनिक नित्यकर्म


दैनिक नित्यकर्म


     व्यक्ति समाज के साथ कैसे वर्ते, इसका उपाय पञ्चमहायज्ञों में बताया गया है। इनमें स्वार्थ और परार्थ का सुन्दर समन्वय किया गया है। पञ्चमहायज्ञ नित्यकर्म हैं। जो ये हैं-


१. ब्रह्मयज्ञ, २. देवयज्ञ, ३. पितृयज्ञ, ४. बलिवैश्वदेवयज्ञ, ५. अतिथियज्ञ


      इन यज्ञों को करना प्रत्येक आर्य का अनिवार्य कर्तव्य है। इनका विवरण आगे दिया गया है।


      प्रथम दो यज्ञ व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक बौद्धिक, आत्मिक उन्नति के साधक हैं। शेष तीन सामाजिक हित के लिए त्याग भाव सिखाते हैं। जिन्होंने जन्म दिया, पाला-पोसा, उनकी सेवा पितृयज्ञ मेंजिन्होंने विद्यादान दिया, सदाचार सिखाया, उनकी सेवा अतिथियज्ञ में और शेष प्राणियों की सेवा बलिवैश्वदेवयज्ञ में वर्णित है।


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