पञ्च देव पूजा


पञ्च देव पूजा


      देव शब्द का अर्थ है देने वाला-ज्ञान देने वाला, भोजन देने वाला, प्रकाश देने वाला आदि। देवी, देवता शब्द देव के ही पर्यायवाची हैं।


       सूर्य, चन्द्र, अग्नि, वायु, जल, पृथिवी आदि देवता जड़ हैं। जड़ वह पदार्थ होता  है जिसे ज्ञान न हो। जड़ पदार्थ की पूजा का कोई मतलब नहीं बनता। हां, हवन-यज्ञ __करके जल और वायु की शुद्धि करनी चाहिये जिससे सभी प्राणियों को सुख मिले।


       पूजनीय देव पांच हैं-


         १. माता-सन्तानों को तन, मन, धन से सेवा करके माता को प्रसन्न रखना, ' ताड़ना कभी न करना।


         २. पिता-उसकी भी माता के समान सेवा करना।


         ३. आचार्य-जो विद्या और सुशिक्षा का देने वाला है उसकी तन, मन, धन से सेवा करनी।


         ४. अतिथि-जो विद्वान्, धार्मिक, निष्कपटी, सबकी उन्नति चाहने वाला संसार में घूमता हुआ, सत्य उपदेश से सबको सुखी करता है उसकी सेवा करनी।


         ५. स्त्री के लिए पति और पुरुष के लिए अपनी पत्नी पूजनीय है


          ये पांच मूर्तिमान देव हैं जिनके संग से मनुष्य शरीर की उत्पत्ति, पालन, सत्यशिक्षा, विद्या और सत्योपदेश की प्राप्ति होती है। इनकी सेवा ही पंचदेव पूजा या पंचायतन पूजा है।


       परमेश्वर भी देव है। वह सबसे बड़ा महादेव है। उसकी पूजा का प्रकार पहले लिख आए हैं ।


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