छठा आक्षेप


              वैज्ञानिक भी अब क्रमशः ज्ञानवृद्धि के मन्तव्य का विरोध करने लगे हैं।


              (१) सर आलिवर लाज, क्रमशः ज्ञानवृद्धि के सिद्धान्त का विरोध करते हुए ऐसा मानने वालों से प्रश्न करते हैं कि सूक्ष्म कला फोटोग्राफी आदि का बिना शिक्षा प्राप्त किये किस प्रकार प्रादुर्भाव हुआ? एक दूसरे विद्वान् बालफोर ने लाज के इस प्रश्न का समर्थन किया है।


              (२) डाक्टर वालेस ने जो विकासवाद के आविष्कारों में से एक थे अपने जमशः ज्ञान की वृद्धि वाले सिद्धान्त को छोड़कर एक जगह लिखा है कि जो विचार वेद की ऋचाओं से प्रकट होते हैं. उनके लेखक उत्तम शिक्षकों ओर हमारे मिलटनों और टेनीसनों से न्यून नहीं थे। डाक्टर वालेस के शब्द ये हैं-


              ('We must admit that the mind which conceived and expressed in appropriate language, such ideas, as are everywhere apparent in these Vedic hymns, could not have been in any way inferior to those of the best of our religious teachers and poets, to our Miltons and our Tennyson.')


              (३) डाक्टर वालेस ने मिश्र और मेसोपटेमिया की पुरानी कलाओं और लेखों पर विचार करते हुए उनको भी आजकल की अच्छी कलाओं से कम नहीं ठहराया है। उन्होंने इन और ऐसी ही अन्य बातों पर विचार करते हुए परिणाम यह निकाला है, कि क्रमश: ज्ञानवृद्धि का कोई प्रमाण नहीं है-


              There is therefore no proof continuously increasing intellectual power.


              (४) (क) गैलटन महोदय ने एक जगह लिखा है-
              It follows from this that average ability of the Athenian race is on the lowest possible estimate, very nearly two grades higher than our own; that is about as much as our own race is above that of the African negro.
                                                                          (Heridity Genius, by Galton, P. 331)


             इनका सार यह है कि यूनानियों की मध्य योग्यता नीची से नीची मात्रा में यदि आँकी जाये, तो भी हमारी सभ्यता से दो दरजे ऊपर थी। अर्थात् लगभग उतनी ऊँची थी जितनी हमारी जाति अफरीका के हब्शियों से ऊँची है।


             यनानियों की यह योग्यता कहाँ से आई? इस का उत्तर देते हुए 'आनफील्ड' ने लिखा है कि पाइथा गोरस, अनकसा गोरस, पिरहो आदि अनेक यूनानी विद्वान्, शिक्षा पाने के लिए भारतवर्ष आये और । लौटकर यूनान में प्रसिद्ध वैज्ञानिक बने।


            (४) (ख)- प्रोफेसर गोल्डस्मिथ की एक पुस्तक (The laws of life) की समालोचना करते हुए 'के' (W.E.Key) महोदय ने 'गुड-हैल्थ' (Good Health) में लिखा है कि विकासवाद का अर्थ समझने से पहले यह बात अच्छी तरह से हृदयांकित कर लेनी चाहिए कि यह वाद न तो यह कहता है कि ईश्वर नहीं है और न इसकी शिक्षा यह है कि मनुष्य बन्दरों से उत्पन्न हुआ है। पैरी ने अपने एक ग्रन्थ में और एडवर्ड कारपेंटर ने भी अपने एक दूसरे ग्रन्थ में डाक्टर वालेस और प्रो० 'के' की सम्मतियों का समर्थन किया है-


            (५) डार्विन भी जो विकासवाद का आविष्कारक था, अनीश्वरवादी नहीं था। उसने अपनी एक पुस्तक के पहले संस्करण में, जो योनियों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में है, लिखा था-


            "I should infer from analogy that probably all the organic beings have descended from some one primordial form into which life first breathed." 


             परन्तु उसी पुस्तक के दूसरे संस्करण में उसने उपर्युक्त वाक्यों को संशोधित करके इस प्रकार लिखा है-


             "There is a grandeur in this view of life having been originally breathed by the Creator into a few forms or into one."


               संशोधित वाक्य में, जीवन फूंकनेवाला ईश्वर को वर्णन करके


डार्विन ने साफ शब्दों में प्रकट कर दिया है कि वह ईश्वर की सत्ता मानता था। (टिंडल ने अपने बेलफास्ट के भाषण में डार्विन के पहले संस्करण में प्रयुक्त किये हुए आदिम योन शब्दों पर आक्षेप किया था कि उस डार्विन ने किस आधार पर यह कल्पना की है।)


               जो कुछ विकासवाद के सम्बन्ध में ऊपर लिखा गया, वह यह प्रकट कर देने के लिए पर्याप्त है कि इस वाद के दो सिद्धान्त तो अत्यन्त आपत्तिजनक हैं- (१) एक योनि से दूसरी योनि की उत्पत्ति, (२) क्रमश: ज्ञान की वृद्धि। इसीलिए अधिकतर वैज्ञानिक भी अब इसके विरुद्ध हो गये और बराबर होते चले जा रहे हैं। डार्विन के विकासवाद ने ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति के सिद्धान्त में जो बाधा पहुँचाने का यत्न किया था, वह यत्न निष्फल सा सिद्ध हो रहा है। इसलिए उसके सम्बन्ध में अब और अधिक न कहकर फिर मैं असली विषय (ईश्वरीय ज्ञान) की ओर आता हूँ-


              (ईश्वरीय ज्ञान) की ओर आता हूँईश्वरीय ज्ञान के सम्बन्ध में तीन कल्पनाएं
जो ज्ञान ईश्वर द्वारा प्राप्त होता है, उसके सम्बन्ध में तीन कल्पनाएँ की जाती हैं-


-महात्मा नारायण स्वामी 



Popular posts from this blog

ब्रह्मचर्य और दिनचर्या

वैदिक धर्म की विशेषताएं 

अंधविश्वास : किसी भी जीव की हत्या करना पाप है, किन्तु मक्खी, मच्छर, कीड़े मकोड़े को मारने में कोई पाप नही होता ।