चेतो री आर्य बारी (गीत)
चेतो री आर्य बारी (गीत)
अब हो गया सबेरा चेतो री आर्य नारी।
सोचो जरा हुई अब कैसी दशा तुम्हारी।।
तुममें हुई सती थी, सीता जनक दुलारी,
संकट सहे अनेकों निज धर्म को न हारी।
पर आज भूत-प्रेतों का, भय तुम्हें है भारी।
कौशल्या अंजना थीं, तुममें जिन्होंने जाये,
सुत राम से प्रतापी, हनुमान ब्रह्मचारी।
पर अब बनाई संतति कायर निपट अनारी,
खटपट से चूहों की जो करते हैं रूदन जारी।
विदुषी थीं लोपामुद्रा, विद्याधरी सी तुममें,
पर आज तुम कहाई, मुर्खा निपट गंवारी।
यदि शिक्षिता हुई कुछ पश्चिमीय रंग से,
ऐसी रँगी कि कुल की मर्यादा सब बिसारी।
तज पूर्ण ब्रह्म चेतन, जड़ को झुकातीं मस्तक,
पूजो मदार तो फिर, सुत क्यों न हो मदारी।
निज सास और श्वसुर को जल का दिया न लौटा,
पाखण्डियों को पूरी पकवान भेंट भारी।
कर लो सुधार अपना तजकर कुरीति सारी,
मानो 'प्रकाश' की यह अब सीख लाभकारी।।