चटगांव शस्त्रागार काण्ड

चटगांव शस्त्रागार काण्ड


(जिसमें ४० किशोर क्रान्तिकारी शहीद और २५ को सजा हुई)


      आजादी की धुन में युवा ही नहीं किशोर भी कितने दीवाने थे, उस दीवानगी का प्रमाण चटगांव शस्त्रागार कांड का युद्ध है जिसे बंगाल के चटगांव के ७०-८० किशोरों ने लड़ा था |


      १८ अप्रैल १८३० की रात की यह मार्मिक घटना है |


      सर्वश्री अनन्तसिंह, अम्बिका चक्रवर्ती, गणेश घोष, सूर्यसेन के नेतृत्व में कुछ बालक और किशोर इकट्ठे हुए। उन्होंने अंग्रेजी सरकार की संचार, यातायात और पुलिस व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर पुलिस शस्त्रागार लूटने की योजना बनायी। वे सब चार दलों में बंट गये। एक दल ने कलकत्ता और ढाका जाने वाले टेलीफोन के तारों को काटा और टेलीफोन एक्चेंज को आग लगा दी। दूसरा दल रेल की पटरियों को उखाड़ने में लगा था। थोड़ी ही देर में कई गाड़ियां पटरियों से उतर गयीं और रेल मार्ग रुक गया। एक बड़े दल ने पुलिस लाइन पर धावा बोल कर वहां के हथियार लूट लिये और वहां आग लगा दी। चौथे दल ने आग्जीलियरी फोर्स के शस्त्रागार को तोड़कर वहां रखे पिस्तौलों, रिवाल्वरों, कारतूसों और बन्दूकों को लूट लिया। सार्जेंट फैरेल की उनके घर में ही हत्या कर दी। फिर चारों दल मिल गये। किशोर क्रान्तिकारियों में इतना उत्साह था कि रात ११ बजे यह अभियान शुरू किया था और १२ बजे तक चटगांव के बाहरी भाग में सारे सरकारी स्थानों पर तोड़फोड़ कर चुके थे।


      रात १२ बजे के लगभग जिला मजिस्ट्रेट पुलिस को लेकर इन क्रान्ति पर उतरे बालकों को रोकने पहुंचा किन्तु दल ने उस पर गोलियां बरसायीं। वह तो बच भागा परन्तु उसका ड्राइवर घायल हो गया और एक पुलिसकर्मी वहीं मारा गया। इसी बीच अन्य उच्च अधिकारी गोरखा सैनिकों को लेकर पहुंच गये। सैनिक-पल्टन को आती देखकर क्रान्तिकारी पहाड़ियों की ओर निकल गये। वहां पहाड़ियों पर मोर्चा लेकर बैठ गये। सैनिक-पल्टन ने पहाड़ियों की ओर जाकर उन्हें घेर लिया। कई घण्टों तक दोनों ओर से गोलाबारी होती रही। इस युद्ध में सेना के ५० के लगभग सैनिक मारे गयेअधिकारियों को यह युद्ध बंद करना पड़ा |


      दूसरा दिन हुआ। सरकार ने सैनिकों की संख्या बढ़ा दी और नवीनतम तथा घातक शस्त्रों का उपयोग किया। एक ओर शस्त्रास्त्रों और खाद्य सामग्री से सम्पन्न पर्याप्त सैनिक थे दूसरी ओर आजादी के दीवाने कुछ युवक थे, जिनके पास सीमित शस्त्र थे, भूख-प्यास से बेहाल और थकान से चूर थे। इन किशोरों ने दूसरे दिन भी डटकर मुकाबला किया। परिणामस्वरूप सेना के ३० लोग मारे गये। अब गोला-बारूद समाप्त होता देख ये किशोर घनी पहाड़ियों की ओर खिसक गये। इनका दल तितर-बितर हो गया। पुलिस और फौज लगातार पीछा कर रही थीजगह-जगह पर किशोर मारे जाने लगे। ४० के लगभग शहीद हो चुके थे। अन्त में कुछ किशोरों ने समर्पण कर दिया। गणेश घोष भी पकड़े गये। अनन्तसिंह ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। इस सम्बन्ध में कुल ३० लोग पकड़े गये जिन पर मुकदमा चलाया गया। अदालत ने उनमें से १२ को कालापानी की सजा दी, दो को दो-दो वर्ष की सजा दी तथा १६ को प्रमाणों के अभाव में छोड़ दिया। शहीद होने वाले जिन युवकों का विवरण प्राप्त हुआ है, उनमें १५ निम्नलिखित थे-


१. हरिगोपाल बाल            १४ वर्ष        ९. मोती                    १७ वर्ष


२. त्रिपुरासेन                   १५ वर्ष        १०. नरेशराय              १७ वर्ष 


३. दस्तीदार मा               १६ वर्ष         ११. मधुसूदन दत्त      १७ वर्ष


४. विकाक                      १६ वर्श        १२. जतिनदास            १८ वर्ष


५. प्रवास नाथ                 १६ वर्ष         १३. पुलिननिकास घोष १९ वर्ष


६. हरिगोपाल                  १८ वर्ष         १४. निशेन महाचार्य      २० वर्ष


७. गोके                         १७ वर्ष          १५. नरेश राय              २२ वर्ष 


८. कम्मू                        १७ वर्ष  


      धन्य हैं आजादी के लिए शहीद होने वाले ये किशोर ! सारा देश इन्हें प्रणाम करता है।


 


     जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं।


वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं॥


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