ब्रह्मचर्य का बल


ब्रह्मचर्य का बल


      स्वामी दयानन्द केवल अद्वितीय विद्वान् ही न थे। ब्रह्मचर्य के प्रताप से उनका शरीर भी बहुत बलवान् था।


       जालंधर में एक दिन सरदार विक्रमसिंहजी ने विनती की कि सुनते हैं, ब्रह्मचर्य से मनुष्य बड़ा बलवान् बन जाता है। क्या यह सच है? स्वामीजी ने उत्तर दिया कि हाँ, बिल्कुल सच है।


      स्वामीजी ने उत्तर दिया कि हाँ, बिल्कुल सच है।


      तब सरदार साहब बोले कि महाराज आप भी तो ब्रह्मचारी हैं। हमें आपमें कोई विशेष बल तो मालूम नहीं होता। महाराज ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दियासरदार साहब बड़ी देर तक सत्संग में बैठे रहेचलते समय जब प्रणाम करके गाड़ी में सवार हुए तो महाराज ने उनकी गाड़ी को पीछे से पकड़ लिया। विक्रमसिंहजी ने घोड़ों को बहुतेरे कोड़े लगाये, परन्तु गाड़ी अपनी जगह से न हिली। सरदार साहब ने जब पीछे की ओर मुड़ कर देखा तो महाराज ने गाड़ी छोड़ दी और कहा कि ब्रह्मचर्य के बल का प्रमाण आपको मिल गया। सरदार महाशय स्वामीजी के बल को देखकर दंग रह गये।


     काशी में स्वामीजी महाराज इस्लाम की पोल खोलते और इसके सिद्धान्तों की खूब धज्जियाँ उड़ाया करते थे। इससे कुछ मुसलमान बहुत अप्रसन्न हुए। एक दिन स्वामीजी गंगा-तट पर आसन लगाये बैठे थे। संयोग से मुसलमानों की एक टोली भी वहाँ घूमती हुई आ गई। उस मण्डली में से कुछ लोगों ने स्वामीजी को पहचान कर कहा- यह वही बाबा है जो कुछ दिन हुए हमारे धर्म के विरुद्ध व्याख्यान दे रहा था। उनमें से दो  मनष्य बहुत अधिक जोश में आ गये। वे स्वामीजी की दोनों भुजाएँकंधों के पास से मजबूती के साथ पकड़ लीं। वे उन्हें झुला कर गंगा में फेंकना ही चाहते थे कि स्वामीजी ने अपनी दोनों बाँहें सिकोड़ कर शरीर के साथ लगा लीं और जोर से आगे की ओर उछल कर उन दोनों मनुष्यों-समेत वे पानी में कूद पड़े। इन दोनों व्यक्तियों के हाथ कुछ देर तक शिकंजे में कसे रहे, परन्तु नदी में डुबकी लगाते समय उन पर दया करके महाराज ने उन्हें छोड़ दिया। वे दोनों बड़ी मुश्किल से पानी से बाहर निकले। वे और उनके साथी हाथ में मिट्टी के ढेले आदि लिये बड़ी देर तक नदी के किनारे खड़े देखते रहे कि वह बाबा सिर निकाले तो उसे मारे। स्वामीजी भी उनके विचार को जानते थे। उन्होंने साँस को रोक लिया और पानी की तह में पलथी मारे बैठे रहे। अँधेरा हो जाने पर इस मण्डली ने मन में यह समझा कि वह बाबा डूब गया है। इसलिए वे चले गयेइसके बाद स्वामीजी भी जल से बाहर निकल अपने आसन पर आ विराजे।


 


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