ब्रह्मचारी के तीन साधन और उनके फल


ब्रह्मचारी के तीन साधन और उनके फल


      ब्रह्मचारी के तीन साधनों में सर्वप्रथम समिधा है, इसे हमने आत्मसमर्पण का प्रतीक माना है। आत्मसमर्पण के लिए दो बातें आवश्यक हैं-विनय और अनुशासन। वेद ने समिधा के माध्यम से ब्रह्मचारी के विनय और अनुशासन धर्मों का वर्णन कर दिया। दूसरा साधन मेखला है, इसे हमने कटिबद्धता का प्रतीक माना हैकटिबद्धता के लिए आलस्यरहित, सर्वथा जागरूक रहने की आवश्यकता है। अन्तेवासी के इन दोनों धर्मों को मेखला शब्द में आबद्ध कर दिया गया है। ब्रह्मचारी के साधनों में तृतीय साधन श्रम है। श्रम का अर्थ जहाँ प्रत्येक प्रकार के पुरुषार्थ के प्रति पूज्य बुद्धि और सहर्ष स्वीकति है. वहाँ विद्यानराग एवं स्वाध्याय में प्रवत्ति है। उक्त धर्मों के लिए द्वन्द्व सहने की अत्यन्त आवश्यकता है । क्षुधा-तृषा में, हानि-लाभ में, जय-पराजय में, शीत-उष्ण में, सुख-दुःख में अपने को सन्तुलित रखना तप है। इन सब आचरणों को सूक्त के तप शब्द में आबद्ध किया जा सकता है।


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