बोमेली युद्ध के चार शहीद

बोमेली युद्ध के चार शहीद


१. श्री कर्मसिंह           २. श्री उदयसिंह


३. श्री बिशन सिंह        ४. श्री महेन्द्रसिंह


      ये चारों बबर अकाली आन्दोलन के वे क्रान्तिकारी थे जिन्होंने देश और विदेशों में भारतीयों के प्रति अंग्रेजों के अपमानजनक व्यवहार और अत्याचारों से विक्षुब्ध होकर असहयोग आन्दोलन का मार्ग छोड़कर क्रान्ति का मार्ग अपनाया। इन्हें यह निश्चय हो गया था कि निर्दोष लोगों तक को यातनाएं देकर मारने वाली गोरी सरकार भय के बिना शासन नहीं सौंपेगी। उनकी सोच बिल्कुल सही थी। यदि क्रान्तिकारियों का भय और आजाद हिन्द सेना का दबाव न बनता तो केवल असहयोग आन्दोलन के द्वारा आजादी प्राप्त करना संभव नहीं था।


      उक्त चारों में कर्मसिंह दौलतपुर के, उदयसिंह रामगढ़ झुगियां के, बिशनसिंह मंगत के और महेंद्रसिंह 'पिंडोरी गंगासिंह' गांव के रहने वाले थे। कर्मसिंह और उदयसिंह बबर अकाली दल' के मुख्य कार्यकर्ताओं में गिने जाते थे। चारों ही बहादुर, साहसी और देशप्रेम के दीवाने थेआप सब गांव-गांव घूम कर लोगों में व्याख्यान देते थे और उन्हें समझाते थे कि एक विदेशी सरकार जो हम पर जुल्म ढा रही है उसका कारण हमारी कायरता हैजब तक हम गुलामी को उखाड़ नहीं फैंकते तब तक हम यों ही ठोकरें खाते रहेंगे। इनके खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट जारी हो गये। फिर सब भूमिगत होकर कार्य करने लगे।


      कर्मसिंह 'बबर अकाली' नामक समाचार पत्र के सम्पादक भी थे, अच्छे वक्ता भी थे और विश्वासघातियों को दण्ड देने में कठोर भी थे। आपका कहना था कि 'मैं एक बार दुश्मन को तो छोड़ सकता हूं किन्तु अपने देश के गद्दारों को क्षमा नहीं कर सकता।' यही कारण था कि आपने क्रान्ति के प्रचार के साथ-साथ गद्दारों को भी सजाएं दीइन लोगों ने अपराध कम होने पर किसी को केवल सम्पत्ति छीनकर छोड़ दिया तो किसी को अधिक अपराध करने पर मौत के घाट उतारा। १४ फरवरी १९२३ को हैयतपुर के दीवान को मारा क्योंकि वह 'बबर अकालियों की गुप्तचरी कर सरकार को भेद देता था। २० मार्च १९२३ को इसी गद्दारी के कारण बइबलपुर गांव के हजारासिंह को मार गिराया। इनके भय से गद्दारी कम होने लगी, तो सरकार को सूचनाएं कम उपलब्ध ने लगी। सरकार की चिन्ता बढ़ गई। सरकार ने इन देशभक्तों की गिरफ्तारी पर इनाम घोषित कर दिया। फिर भी गिरफ्तारी न होने पर इनाम की राशि और बढ़ा दिया, किन्तु वे आसानी से पकड़ में नहीं आये |


      १ सितम्बर १९२३ का दिन क्रान्तिकारियों के लिए दुर्भाग्य लेकर आया। उस दिन ये चारों जिला कपूरथला के बोमेली गांव के पास थे। किसी गद्दार ने इसकी सूचना पुलिस अधीक्षक स्मिथ को दे दी। स्मिथ ने कुछ पैदल और कुछ घुड़सवार सैनिकों को लेकर उन्हें सामने की ओर से घेरा और पीछे की ओर से घेरने के लिए सब इंस्पेक्टर फतेह खां को पचास सैनिक देकर भेजा। स्मिथ को पीछा करता जानकर इन्होंने पास के चौंता साहब के गुरुद्वारे में शरण लेने का विचार बनाया। यह सोचकर पीछे हटने लगे। दोनों ओर से गोलियों की बौछार हो रही थीगुरुद्वारे के चारों ओर एक नाला था। मुकाबला करते हुए ये उस नाले तक पहुंच गये। वहां पहुंचते ही दूसरी ओर छिपे फतेह खां के सैनिकों ने गोली चलाना शुरू कर दिया। ये चारों वीर अब दो सेनाओं के बीच फंस गये थे। फिर भी जब तक वश चला, खूब मुकाबला किया। सामना करते हुए उदयसिंह और महेंद्रसिंह को गोली लगी और वे पानी में ही लुढ़क गये।


      कर्मसिंह किसी तरह गोलियों से बचते हुए नाला पार कर गये। दूसरे किनारे की आड़ लेकर फतेह खां के सैनिकों पर गोली चलाने लगे। फतेह खां ने दूर से पुकारकर कहा -“आत्म समर्पण कर दो।'


      "नहीं !!" एक जोरदार आवाज में कर्मसिंह ने उत्तर दिया और साथ ही एक गोली भी दागी। दुर्भाग्य से वह फतेह खां का निशाना चूक कर निकल गयी। तभी दूसरी ओर से फतेह खां ने गोली चलायी जो वीर कर्मसिंह के माथे में लगी और वह भी निष्प्राण होकर नाले के पानी में लुढ़क गया।


      इधर चौथा साथी बिशनसिंह अवसर पाकर नरकुल घास की झाड़ियों में छिप गया। दो सिपाहियों को उसको ढूंढने के लिए भेजा गया। एक झाड़ी में हलचल देखकर वे सिपाही उसे देखने के लिए पास पहुंचे। पास आते ही बिशनसिंह 'सत् श्री अकाल' कहकर तलवार लेकर उन पर झपटा। एक वार से एक सिपाही घायल हो गया लेकिन दूसरा बच निकला। बिशनसिंह ने नाला पार करके जाने की कोशिश की किन्तु उस सिपाही ने पीछे से गोली चला दी जो बिशनसिंह को लगी और वह भा अपने तीन साथियों की तरह नाले में लुढ़क गया। इस प्रकार चार पशभक्त वीरों की तरह सामना करते हुए बलिदान हो गये। 


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