भ्रम निवारण


भ्रम निवारण


      सूर्यग्रहण तथा चन्द्र ग्रहण-पृथिवी सूर्य के गिर्द घूमती है और चन्द्रमा पृथिवी के गिर्द। जब सूर्य और पृथिवी के बीच सीध में चन्द्रमा आ जाता है, तब सूर्य की पूरी रोशनी पृथिवी पर नहीं पहुँचती, बीच में चन्द्रमा की रुकावट आ जाती है। ऐसी स्थिति को सूर्य ग्रहण कहा जाता है। जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच सीध में पृथिवी आ जाती है तब चन्द्रमा पर पृथिवी की छाया पड़ती है। इस स्थिति का नाम चन्द्रग्रहण है। यह ईश्वर की व्यवस्था से तथा गणित विद्या के आधार पर ही होता है। इसमें पुण्य या पाप कुछ नहीं होता। ये स्थितियां थोडे समय के लिए रहती हैं और फिर बदल जाती हैं। इन्हें बदलने के लिए दान आदि देना-लेना अज्ञानता और ढोंग है।


       भूत, प्रेत-जब कोई मनुष्य मर जाए तब उसके मृतक शरीर का नाम प्रेत हैऔर जब मृतक शरीर का दाह संस्कार हो जाए तब उसका नाम भूत है। भूत उसे कहते हैं जो पहले हो और अब न रहा हो। भूत, प्रेत के नाम से डरने डराने और उसका उपाय करने कराने के लिए झाड़ फूंक आदि छल कपट और मूर्खता है।


       ग्रह-सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु-इन नौ को नवग्रह कहते हैं। वास्तव में ये सारे ग्रह नहीं हैं। सूर्य नक्षत्र है क्योंकि वह स्वयं प्रकाशमान है। सूर्य के गिर्द घूमने वाले मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि-ये पांच ग्रह हैं क्योंकि ये स्वयं प्रकाशित नहीं हैं। चन्द्रमा उपग्रह है क्योंकि वह पृथिवी के गिर्द घूमता है। राहु और केतु न नक्षत्र हैं, न ग्रह हैं और न ही उपग्रह हैं। ये तो काल्पनिक नाम हैं और '. इन्हें ग्रह कहने वालों की अज्ञानता और धूर्तता ही इसमें कारण है। सूर्य और चन्द्र को राहु, केतु द्वारा ग्रसित मानना तथा उन्हें छुड़वाने के लिए मनुष्यों का नदी, तालाब आदि में स्नान करना और दान देना आदि घोर अज्ञानता है ।


      ये ग्रह जड़ होने से न प्रसन्न होते हैं और न अप्रसन्न, न किसी पर क्रूर और 1न सौम्य होते हैं। अगर कोई कहे कि सूर्य एक पर क्रूर और दूसरे पर सौम्य है तो दोनों को गर्मी की दोपहर की धूप में नंगे पांव चलाओ। जिस पर कर हो उसके पैर और शरीर जल जाएं और जिस पर सौम्य हो उसके पैर और शरीर न जलें। पर ऐसा नहीं होता। इससे समझ लेना चाहिये कि ग्रहों की यह लीला सब पाखण्ड है।


        ज्योतिष-जो गणित. विद्या है जिससे सूर्य ग्रहण, चन्द्रग्रहण, सूर्योदय, सूर्यास्त. आदि का समय बताते हैं, वह सब सच्ची है। और जो कर्मफल आदि बताते हैं वह सब झूठी है। कर्मफल बताने वाली ज्योतिष विद्या वेद या वेदानुकूल किसी ग्रन्थ में नहीं लिखी, यह सब छलावा है।


      लग्न वा मुहूर्त्त-कोई भी शुभ कर्म करने के लिए अनुकूल ऋतु, वार और समय निश्चित् करना चाहिए। यह पाधे से पूछने की बात नहीं है। यह तो आपकी सुविधा की बात है। बाकी रहे सुख-दु:ख, वह तो अपने कर्मों के हिसाब से भोगने ही पड़ते हैं। किए हुए कर्मों के फल से बिना भोगे छूटने का संसार में कोई भी उपाय नहीं है। आगे से दुष्कर्म करने से बचना ही मुख्य बात है। 


       जन्मपत्र-जन्मपत्र बनवाना व्यर्थ और शोक कारक है। व्यर्थ इसलिए कि कर्मों के भोग को कोई टाल नहीं सकता। और शोक कारक इसलिए कि बच्चे के जन्म से जो प्रसन्नता होती है वह पाधे की बनाई जन्मपत्री के आधार पर मीठी-कड़वी बातें सुनकर शोक में बदल जाती है। और भी, कर्मफल बताने वाली कोई भी विद्या संसार में नहीं है। यह तो ईश्वर का क्षेत्र है और ईश्वर ही जानता है, मनुष्य नहीं।


        मन्त्र, तन्त्र-कोई कहे कि मन्त्र पढ़के तागा तावीज बना दें तो सब विघ्न दूर हो जाएं। ऐसा करने वालों के अपने लड़का, लड़की भी बीमार होते हैं और मरते हैं। ईश्वर की न्याय व्यवस्था को कोई नहीं बदल सकता। अतः ये सब धूर्तता की बातें हैं। ऐसे ही जादू, टोना आदि स्वार्थी और ढोंगियों की बातें हैं। इन बातों का वैदिक शास्त्रों में कहीं कोई उल्लेख नहीं है।


        बुद्धिमान् लोगों को ऐसी गलत बातों में नहीं फंसना चाहिए।


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